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स्थान-९/-/८७५
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[८७५] उन विमलवाहन भगवान् का किसी में प्रतिबन्ध (ममत्व) नहीं होगा । प्रतिबन्ध चार प्रकार के हैं, यथा-अण्डज, पोतज, अवग्रहिक, प्रग्रहिक । ये अण्डज-हंस आदि मेरे हैं, ये पोतज-हाथी आदि मेरे हैं, ये अवग्रहिक मकान, पाट, फलक आदि मेरे हैं । ये प्रग्रहिक पात्र आदि मेरे हैं । ऐसा ममत्वभाव नहीं होगा ।
__वे विमलवाहन भगवान् जिस-जिस दिशा में विचरना चाहेंगे उस-उस दिशा में स्वेच्छापूर्वक शुद्ध भाव से, गर्व रहित तथा सर्वथा ममत्व रहित होकर संय से आत्मा को पवित्र करते हुये विचरेंगे । उन विमल वाहन भगवान् को ज्ञान, दर्शन, चारित्र, वसति और विहार की उत्कृष्ट आराधना करने से सरलता, मृदुता, लघुता, क्षमा, निर्लोभता, मन, वचन, काया की गुप्ति, सत्य, संयम, तप, शौच और निर्वाण मार्ग की विवेकपूर्वक आराधना करने से शुक्लध्यान ध्याते हुए अनन्त, सर्वोत्कृष्ट बाधा रहित यावत्-केवल ज्ञान-दर्शन उत्पन्न होगा तब वे भगवान अर्हन्त एवं जिन होंगे ।
केवल ज्ञान-दर्शन से वे देव, मनुष्यों एवं असुरों से परिपूर्ण लोक के समस्त पर्यायों को देखेंगे । सम्पूर्ण लोक के सभी जीवों की आगति, गति, स्थिति, च्यवन उपपात तर्क, मानसिक भाव, मुक्त, कृत, सेवित प्रगट कर्मों और गुप्त कर्मों को जानेंगे अर्थात् उनसे कोई कार्य छिपा नहीं रहेगा । वे पूज्य भगवान् सम्पूर्ण लोक में उस समय के मन वचन और कायिक योग में वर्तमान सर्व जीवों के सर्व भावों को देखते हुए विचरेंगे । उस समय वे भगवान् केवल ज्ञान, केवल दर्शन से समस्त लोक को जानकर श्रमण निर्ग्रन्थों के पच्चीस भावना सहित पाँच महाव्रतों का तथा छजीवनिकाय धर्म का उपदेश देंगे ।
हे आर्यों ! जिस प्रकार मैंने श्रमण निर्ग्रन्थों का एक आरम्भ स्थान कहा है उसी प्रकार महापद्म अर्हन्त भी श्रमण निर्ग्रन्थों का एक आरम्भ स्थान कहेंगे ।
हे आर्यों ? जिस प्रकार मैंने श्रमण निर्ग्रन्थों के दो बन्धन कहे हैं उसी प्रकार महापद्म अर्हन्त भी श्रमण निर्ग्रन्थों के दो बन्धन कहेंगे यथा-राग बन्धन और द्वेष बन्धन ।
हे आर्यो ! जिस प्रकार मैंने श्रमण निर्ग्रन्थों के तीन दण्ड कहे हैं, उसी प्रकार महापद्म अर्हन्त भी श्रमणनिर्ग्रन्थों के तीन दण्ड कहेंगे यथा-मनदण्ड, वचनदण्ड और कायदण्ड ।।
इस प्रकार चार कषाय, पांच काम गुण, छ जीवनिकाय, सात भय स्थान, आठ मद स्थान, नौ ब्रह्मचर्य गुप्ति, दश श्रमणधर्म यावत् तेतीस आशातना पर्यन्त कहें ।
हे आर्यो ! जिस प्रकार मैंने श्रमण निग्रन्थों का ननभाव, मुण्डभाव, अस्नान, अदन्तधावन, छत्ररहित रहना, जूते न पहनना, भू-शय्या, फलक शय्या, काष्ठ शय्या, केश लोच, ब्रह्मचर्य पालन गृहस्थ के घर से आहार आदि लाना, मान अपमान में सामान रहना आदि की प्ररूपणा करेंगे ।
हे आर्यो ! मैंने श्रमण निर्ग्रन्थों को आधाकर्म, औद्देशिक, मिश्रजात, अध्यवपूर्वक, पूतिक, क्रीत, अपमित्यक, आच्छेद्य, अनिसृष्ट, अभ्याहृत, कान्तारभक्त, दुर्भिक्षभक्त, स्लानभक्त, वछलिका भक्त, प्राधूर्णक, मूलभोजन, कन्दभोजन, फलभोजन, बीजभोजन, हरितभोजन लेने का निषेध किया है उसी प्रकार महापद्म अर्हन्त भी श्रमण निर्ग्रन्थों को आधा कर्म यावत्हरित भोजन लेने का निषेध करेंगे । ____ हे आर्यो ! जिस प्रकार मैंने श्रमण निर्ग्रन्थों का प्रतिक्रमण सहित पंच महाव्रत अचेलक