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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
भाराग्र तथा कुम्भाग्र प्रमाण पद्म एवं रत्नों की वर्षा बरसेगी । पश्चात् उसके माता-पिता इग्यारवां दिन बीतने पर यावत्-बारहवें दिन उसका गुण सम्पन्न नाम देंगे । क्योंकि इनका जन्म होने पर शतद्वार नगर के अन्दर और बाहर भार एवं कुम्भ प्रमाण पद्म एवं रत्नों की वर्षा होने से इस पुत्र का महापद्म नाम देंगे ।
पश्चात् महापद्म के माता-पिता महापद्म को कुछ अधिक आठ वर्ष का हुआ जानकर राज्याभिषेक का महोत्सव करेंगे । पश्चात वह राजा महाराजा के समान यावत-राज्य करेगा । उसके राज्यकाल में पूर्णभद्र और महाभद्र नाम के दो देव महर्धिक यावत्-महान् ऐश्वर्य वाले उनकी सेना का संचालन करेंगे । उस समय शतद्वार नगर के बहुत से राजा यावत्-सार्थवाह
आदि परस्पर बातें करेंगे-हे देवानुप्रियो ! हमारे महापद्म राजा की सेना का संचालन महर्धिक यावत्-महान् ऐश्वर्य वाले दो देव (पूर्णभद्र और मणिभद्र) करते हैं इसलिए इनका दूसरा नाम "देवसेन" हो । उस समय से महापद्म का दूसरा नाम देवसेन भी होगा ।
___ कुछ समय पश्चात् उस देवसेन राजा को शंखतल जैसा निर्मल, श्वेत चार दाँत वाला हस्तिरत्न प्राप्त होगा । वह देवसेन राजा उस हस्तिरत्न पर आरूढ़ होकर शतद्वार नगर के मध्यभाग में से बार-बार आव-जाव करेगा । उस समय शतद्वार नगर के बहुत से राजेश्वर यावत्-सार्थवाह आदि परस्पर बातें करेंगे । यथा हे देवानुप्रियो ! हमारे देवसेन राजा को शंखतल जैसा निर्मल श्वेत चार दान्त वाला हस्ति रत्न प्राप्त हुआ है, इसलिए हमारे देवसन राजा का तीसरा नाम “विमलवाहन' हो ।
पश्चात् वह विमलवाहन राजा तीस वर्ष गृहस्थावास में रहेगा और माता-पिता के स्वर्गवासी होने पर गुरुजनों की आज्ञा लेकर शरद् ऋतु में स्वयं बोध को प्राप्त होगा तथा अनुत्तर मोक्ष मार्ग में प्रस्थान करेगा । उस समय लोकान्तिदेव इष्ट यावत्-कल्याणकारी वाणी से उनका अभिनन्दन एवं स्तुति करेंगे । नगर के बाहर सुभूमि भाग उद्यान में एक देवदूष्य वस्त्र ग्रहण करके वह प्रव्रज्या लेगा ।
शरीर का ममत्व न रखने वाले उन भगवान् को कुछ अधिक बारह वर्ष तक देव, मनुष्य और तिर्यंच सम्बन्धी जो उपसर्ग उत्पन्न होंगे उन्हें वे समभाव से सहन करेंगे यावत्अकम्पित रहेंगे । पश्चात् वे विमलवाहन भगवान् ईर्या समिति, भाषा समिति का पालन करेंगेयावत्-ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे । वे निर्मम निष्परिग्रही कांस्य पात्र के समान अलिप्त होंगे यावत्-कहे गये भगवान् महावीर के वर्णन के समान कहें । वे विमलवाहन भगवान्
[८७३] कांस्यपात्र के समान अलिप्त, शंख के समान निर्मल, जीव के समान अप्रतिहत गति, गगन के समान आलम्बन रहित, वायु के समान अप्रतिबद्ध विहारी, शरद् ऋतु के जल के समान स्वच्छ हृदय वाले, पद्म पत्र के समान अलिप्त, कूर्म के समान गुप्तेन्द्रिय, पक्षी के समान एकाकी, गेंडा के सींग के समान एकाकी, भारंड पक्षी के समान अप्रमत्त, हाथी के समान धैर्यवान । यथा
[८७४] वृषभ के समान बलवान, सिंह के समान दुर्धर्ष, मेरु के समान निश्चल. समुद्र के समान गम्भीर, चन्द्र के समान शीतल, सूर्य के समान उज्ज्वल, शुद्ध स्वर्ण के समान सुन्दर, पृथ्वी के समान सहिष्णु, आहुति के समान प्रदीप्त अग्नि के समान ज्ञानादि गुणों से तेजस्वी होंगे ।