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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
धर्म कहा है इसी प्रकार महापद्म अर्हन्त भी श्रमण निर्ग्रन्थों का प्रतिक्रमण सहित यावत् अचेलक धर्म कहेंगे ।
हे आर्यो ! जिस प्रकार मैंने पांच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत रूप बारह प्रकार का श्रावक धर्म कहा है उसी प्रकार महापद्म अर्हन्त भी पाँच अणुव्रत यावत् श्रावक धर्म कहेंगे ।
___ हे आर्यो ! जिस प्रकार मैंने श्रमण निर्ग्रन्थों को शय्यात्तर पिंड और राजपिंज लेने का निषेध किया है उसी प्रकार महापद्म अर्हन्त भी श्रमण निर्ग्रन्थों को शय्यातर पिंड और राजपिंड लेने का निषेध करेंगे।
हे आर्यो ! जिस प्रकार मेरे नौ गण और इग्यारह गणधर हैं उसी प्रकार महापद्म अर्हन्त के भी नो गण और इग्यारह गणधर होंगे ।
हे आर्यो ! जिस प्रकार मैं तीस वर्ष गृहस्थ पर्याय में रहकर मुण्डित यावत् प्रव्रजित हुआ, बारह वर्ष और तेरह पक्ष न्यून तीस वर्ष का केवली पर्याय, बियालीस वर्ष का का श्रमण पर्याय और बहत्तर वर्ष का पूर्णायु. भोगकर, सिद्ध, होऊंगा यावत् सब दुखों का अन्त करूंगा इसी प्रकार महापद्म अर्हन्त भी तीसवर्ष गृहस्थावास में रहकर यावत् सब दुःखों का अन्त करेंगे।
[८७६] जो शील समाचार (कार्यकलाप) अर्हन् तीर्थंकर महावीर का था वह शील समाचार महापद्म अर्हन्त का होगा ।
[८७७] नौ नक्षत्र चन्द्र के पीछे से गति करते हैं, यथा[८७८] अभिजित्, श्रवण, धनिष्ठा, खति, अश्विनी, मृगशिरा, पुष्य, हस्त, चित्रा । [८७९] आणत, प्राणत, आरण और अच्युत कल्प में विमान नौ सौ योजन ऊँचे हैं | [८८०] विमल वाहन कुलकर नौ धनुष के ऊँचे थे ।
[८८१] कौशलिक भगवान् कृषभदेव ने इस अवसर्पिणी में नौ क्रोड़ाक्रोड़ सागरोपम काल बीतने पर तीर्थ प्रवाया ।
[८८२] धनदन्त, लष्टदन्त, गूढ़दन्त और शुद्धदन्त इन अन्तर्वीपवासी मनुष्यों के द्वीप नौ-सौ नौ-सौ योजन के लम्बे और चौड़े कहे गये हैं।
[८८३] शुक्र महाग्रह की नौ विथियाँ हैं, यथा-हयवीथी, गजवीथी, नागवीथी, वृषभवीथी, गोवीथी, उरगवीथी, अजवीथी, मित्रवीथी, वैश्वानरवीथी ।
[८८४] नौ कषाय वेदनीय कर्म नौ प्रकार का है, यथा-स्त्री वेद, पुरुष वेद, नपुंसक वेद, हास्य, रति, अरति, भय, शोक और दुगुंछा ।।
[८८५] चोरिन्द्रिय जीवों की नौ लाख कुल कोड़ी हैं । भुजपरिसर्प स्थलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों की नौ लाख कुल कोड़ी हैं ।
[८८६] नौ स्थानों में संचित पुद्गलों को जीवों ने पापकर्म के रूप में चयन किया था, करते हैं और करेंगे । यथा-पृथ्वीकायिक जीवों द्वारा संचित यावत्-पंचेन्द्रिय जीवों द्वारा संचित । इसी प्रकार चय, उपचय यावत् निर्जरा सम्बन्धि सूत्र कहने चाहिए ।
[८८७] नौ प्रादेशिक स्कन्ध अनन्त कहे गये हैं, नव प्रदेशावगाढ़ पुद्गल अनन्त कहे गये हैं यावत् नवगुण रुक्ष पुद्गल अनन्त कहे गये हैं ।
स्थान-९ का मुनिदीपस्त्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण