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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
न होना अशुभ होता है । इन पांचों का ज्ञान न होना अनुचित होता है । इन पांचों का ज्ञान न होना अकल्याण होता है । इन पांचों का ज्ञान न होना अनानुगामिता के होता है । यथाशब्द, यावत् स्पर्श ।
इन पांचों का ज्ञान होना, त्याग होना जीवों के हित के लिए होता है । इन पांचों का ज्ञान होना, शुभ के लिए होता है इन पांचों का ज्ञान होना, उचित होता है इन पांचों का ज्ञान होना, कल्याण होता है इन पांचों का ज्ञान होना, अनुगामिकता होता है
इन पाँच स्थानों का न जानना और न त्यागना जीवों की दुर्गतिगमन के लिए होता है । यथा - शब्द, यावत् स्पर्श ।
इन पाँच स्थानों का ज्ञान और परित्याग जीवों की सुगतिगमन के लिए होता है । यथा - शब्द यावत् स्पर्श ।
[४२५] पांच कारणों से जीव दुर्गति को प्राप्त होते हैं । यथा- प्राणातिपात से, यावत् परिग्रह से । पांच कारणों से जीव सुगति को प्राप्त होते हैं । यथा- प्राणातिपात विरमण से, यावत् परिग्रह विरमण से ।
[४२६ ] पांच प्रतिमाएं कही गई हैं । यथा- भद्रा प्रतिमा, सुभद्रा प्रतिमा । महाभद्रा प्रतिमा, सर्वतोभद्रप्रतिमा । भद्रोत्तर प्रतिमा ।
[४२७] पाँच स्थावर काय कहे गये हैं । यथा- इन्द्र स्थावरकाय ( पृथ्वीका ) ब्रह्म स्थावरकाय (अप्काय) शिल्प स्थावरकाय (तेजस्काय) संमति स्थावरकाय (वायुकाय) प्राजापत्य स्थावरकाय (वनस्पति काय )
पाँच स्थावर कायों के ये पाँच अधिपति हैं । यथा- पृथ्वीकाय का अधिपति (इन्द्र), अप्काय का अधिपति (ब्रह्म), तेजस्काय का अधिपति (शिल्प), वायुकाय का अधिपति ( संमति) वनस्पतिकाय का अधिपति ( प्रजापति ) ।
[४२८] अवधि उपयोग की प्रथम प्रवृत्ति के समय अवधि ज्ञान-दर्शन, पाँच कारणों से चलित- क्षुब्ध होते हैं । यथा- पृथ्वी को छोटी देखकर, पृथ्वी को सूक्ष्म जीवों से व्याप्त देखकर, महान अजगर का शरीर देखकर, महान ऋद्धि वाले देव को अत्यन्त सुखी देखकर, ग्राम नगरादि में अज्ञात एवं गड़े हुए स्वामीरहित खजानों को देखकर ।
किन्तु इन पाँच कारणों से केवलज्ञान - केवलदर्शन चलित क्षुब्ध नहीं होता है । यथापृथ्वी को छोटी देखकर यावत् ग्राम नगरादि में गड़े हुए अज्ञात खजानों को देखकर ।
[४२९] नैरयिकों के शरीर पाँच वर्णवाले और पाँच रस वाले कहे गये हैं । यथाकृष्ण यावत् शुक्ल । तिक्त यावत् मधुर । इसी प्रकार वैमानिक देव पर्यन्तर २४ दण्डक के शरीरो के वर्ण और रस कहने चाहिए ।
पाँच शरीर कहे गये हैं, यथा- औदारिकशरीर, वैक्रियशरीर, आहारकशरीर, तेजसशरीर, कार्मणशरीर ।
औदारिक शरीर के पाँच वर्ण और पाँच रस कहे गये हैं । यथा - कृष्ण, यावत् शुक्ल । तिक्त, यावत् मधुर ।
इसी प्रकार कार्मण शरीर पर्यन्त वर्ण और रस कहने चाहिये । सभी स्थूलदेहधारियों के