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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
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रचना । परस्पर पुष्प नाल मिलाकर की जाने वाली रचना ।
अलंकार चार प्रकार के हैं । केशालंकार, वस्त्रालंकार, माल्यालंकार, आभरणालंकार । अभिनय चार प्रकार का है । यथा- किसी घटना का अभिनय करना । महाभारत का अभिनय करना । राजा मन्त्री आदि का अभिनय करना । मानव जीवन की विभिन्न अवस्थाओं का अभिनय करना ।
[४०६] सनत्कुमार और माहेन्द्रकल्प में चार वर्ण के विमान हैं । यथा - नीले, रक्त, पीत और श्वेत ।
महाशुक्र और सहस्त्रारकल्प में देवताओं के शरीर चार हाथ के ऊँचे हैं ।
[४०७] पानी के गर्भ चार प्रकार के हैं । ओस, धुंवर, अतिशीत, अतिगरम । पानी के गर्भ चार प्रकार के हैं । यथा- हिमपात । बादल से आकाश का आच्छादित होना । अतिशीत या अतिगरमी होना । वायु, बद्दल, गाज, बिजली और बरसना इन पांचों का संयुक्त रूप से होना ।
[४०८] माघ मास में हिमपात से, फाल्गुन मास में बादलों से, चैत्र मास में अधिक शीत से और वैशाख में ऊपर कहे संयुक्त पाँच प्रकार से पानी का गर्भ स्थिर होता है [ ४०९] मनुष्यणी (स्त्री) के गर्भ चार प्रकार के हैं यथा - स्त्री रूप में, पुरुष रूप में, नपुंसक रूप में और, बिंब रूप में ।
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[४१०] अल्प शुक्र और अधिक ओज का मिश्रण होने से गर्भ स्त्री रूप में उत्पन्न होता है । अल्पओज और अधिकशुक्र मिश्रण होने से गर्भ पुरुष रूप में उत्पन्न होता है । [४११] ओज और शुक्र के समान मिश्रण से गर्भ नपुंसक रूप में उत्पन्न होता है । स्त्री का स्त्री से सहवास होने पर गर्भ बिंब रूप में उत्पन्न होता है ।
वस्तु हैं ।
[४१२] उत्पाद पूर्व के चार मूल [४१३] काव्य चार प्रकार के हैं
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यथा - गद्य, पद्य, कथ्य और गेय ।
[ ४१४] नैरयिक जीवों के चार समुद्घात है । यथा - वेदना समुद्घात । कषाय समुद्घात । मारणांतिक समुद्घात और वैक्रिय समुद्घात ।
वायुकायिक जीवों के भी ये चार समुद्घात हैं
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[ ४१५] अर्हन्त अरिष्टनेमि - (नेमिनाथ) के चार सौ चौदह पूर्वधारी श्रमणों की उत्कृष्ट सम्पदा थी । जिन न होते हुए बी जिनसदृश थे । जिन की तरह पूर्ण यथार्थ वक्ता थे और सर्व अक्षर संयोगों के पूर्ण ज्ञाता थे ।
[४१६] श्रमण भगवान महावीर के चार सौ वादी मुनियों की उत्कृष्ट संपदा थी । वे देव, मनुष्य असुरों की परिषद में कदापि पराजित होनेवाले न थे ।
[४१७] नीचे के चार कल्प अर्ध चन्द्राकार हैं । यथा - सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार और माहेन्द्र ।
मध्यके चार कल्प पूर्ण चन्द्राकार हैं । ब्रह्मलोक, लांतक, महाशुक्र और सहस्त्रार । ऊपर के चार कल्प अर्ध चन्द्राकार हैं । यथा - आनत, प्राणत, आरण और अच्युत । [४१८] चार समुद्रों में से प्रत्येक समुद्र के पानी का स्वाद भिन्न-भिन्न प्रकार का है । यथा - लवण समुद्र के पानी का स्वाद लवण जैसा खारा है । वरुणोद समुद्र के पानी का स्वाद