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________________ स्वाध्याय आवश्यक क्यों 3-2-12-2-- * -kal E-5-16 --- स्वाध्याय और आत्मज्ञान आवश्यक क्यों? १. तारण पंथ (मुक्ति का मार्ग) क्या है ? यह जानने के लिये । २. आनंद परमानंद मय जीवन बनाने तथा आत्म कल्याण करने के लिये। ३. ज्ञान का विकास और गहराई में उतरने के लिये। ४. आगम और अध्यात्म के रहस्यों को समझने के लिये। निश्चय-व्यवहार से समन्वित मुक्ति मार्ग प्राप्त कर संसार से छूटने और मुक्ति की प्राप्ति करने के लिये, इन चौदह ग्रंथों का स्वाध्याय करना और अपने आपको जानना बहुत आवश्यक है। * ******* ** श्री उपदेश शुद्ध सार जी साहित्य : समाज का दर्पण परम वीतरागी तीर्थंकर भगवंतों की आध्यात्मिक शाश्वत परम्परा में अनेकों ज्ञानी ध्यानी, जिनवर वाणी के ज्ञाता महापुरुष हुए हैं। उनकी विशुद्ध आम्नाय में श्री गुरु तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज आत्म साधना के मार्ग में निरंतर अग्रणी रहने वाले आध्यात्मिक के ज्ञान पुंज के धनी, विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न वीतरागी अध्यात्म योगी ज्ञानी संत थे। आत्म स्वरूप के अनुभव पूर्वक पूज्य गुरुदेव ने वीतराग मार्ग पर चलकर स्वयं अपना आत्म कल्याण करते हुए जाति-पांति से परे लाखों जीवों के कल्याण का पथ प्रशस्त किया। उनके बारा विरचित चौदह ग्रंथ अध्यात्म साधना की अनुभूतियों से परिपूर्ण हैं। ज्ञानमार्ग पर चलने वाले मोक्षमार्गी साधक को आत्म साधना के मार्ग में कौन-कौन सी बाधायें आती हैं और उन्हें कैसे दूर किया जाये तथा अध्यात्म साधना की सफलता को किस प्रकार उपलब्ध किया जाये यह सम्पूर्ण मार्गदर्शन पूज्य गुरुदेव श्रीमद् जिन तारण स्वामी के ग्रंथों से प्राप्त होता है । यह चौदह ग्रंथ रत्न युगों-युगों तक भव्य आत्माओं को प्रकाश स्तंभ की तरह आत्म साधना में निमित्त बने रहेंगे। इन ग्रंथों में अन्तर्निहित रहस्यों को अतीत में हए अनेक ज्ञानी विद्वानों ने प्रगट करने का प्रशंसनीय प्रयास किया है। इसी श्रृंखला में अध्यात्म शिरोमणी पूज्य श्री ज्ञानानन्द जी महाराज का मंगलमय सानिध्य हमारे महान सौभाग्य से प्राप्त हुआ। उन्होंने सदगुरु तारण स्वामी के मार्ग को मात्र जाना ही नहीं बल्कि स्वयं भी उस मार्ग पर चले और चौदह ग्रंथों में से श्री मालारोहण जी, पंडितपूजा जी, कमलबत्तीसी जी, तारण तरण श्रावकाचार जी, त्रिभंगीसार जी, उपदेश शुद्ध सार जी एवं ममल पाहुइ जी ग्रंथ की ५६ फूलनाओं की अपूर्व टीकायें की हैं, जो गुरू महाराज के भावों को स्पष्ट करने वाली हैं। श्री तारण तरण अध्यात्म प्रचार योजना केन्द्र भोपाल को सकल तारण समाज के सहयोग पूर्वक गुरुवाणी के प्रचार-प्रसार का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। वर्तमान समय के अनुरूप इस साहित्य प्रकाशन से सम्पूर्ण देश में गुरुवाणी की महती प्रभावना हो रही है। साहित्य समाज का दर्पण होता है, यह इस प्रचार-प्रसार से सिद्ध हो गया है। अध्यात्म शिरोमणी पूज्य श्री ज्ञानानन्द जी महाराज के प्रति हम हदय से कृतज्ञ हैं। उनके समाधिस्थ होने के पश्चात् भी उनके द्वारा दिया हुआ ज्ञान हमारा पथ प्रशस्त करता रहेगा । अध्यात्म रत्न बाल ब्र. पूज्य श्री बसन्त जी महाराज एवं तारण तरण श्री संघ के सभी साधक जन ब. बहिनें और विद्वतजनों का गुरुवाणी की प्रभावना में हमें निरंतर मार्गदर्शन प्राप्त हो रहा है इससे हम गौरवान्वित हैं तथा सकल तारण तरण जैन समाज के लिये भी यह गौरव का विषय है। सभी भव्य जीव इन टीका ग्रंथों का स्वाध्याय चिंतन-मनन करके अपने आत्म कल्याण का मार्ग बनायें यही पवित्र भावना है। विनीत *दिनांक : ७.४.२००२ छोटेलाल जैन, आनन्द तारण (संरक्षक) फाग फूलना महोत्सव एवं समस्त पदाधिकारीगण श्री तारण तरण अध्यात्म प्रचार योजना केन्द्र, ६१ मंगलवारा, भोपाल (म.प्र.) ******* **** ज्ञानदान स्वाध्याय हेतु उपलब्ध सत्साहित्य * श्री उपदेशशुद्धसार जी (साधक संजीवनी टीका) - ६५रुपया * श्री श्रावकाचार जी (अध्यात्म जागरण टीका) ६० रुपया * श्री मालारोहण जी (अध्यात्म दर्शन टीका)(तृतीय संस्करण) - ३० रुपया * श्री पंडितपूजा जी (अध्यात्म सूर्य टीका) १५ रुपया * श्री कमलबत्तीसी जी (अध्यात्म कमल टीका) २५ रुपया * श्री त्रिभंगीसार जी (अध्यात्म प्रबोध टीका) ३०रुपया * अध्यात्म अमृत (जयमाल, भजन) १०रुपया * अध्यात्म किरण (जैनागम १००८ प्रश्नोत्तर) १०रुपया * अध्यात्म भावना ८रुपया * अध्यात्म आराधना (देव गुरु शास्त्र पूजा) ६रुपया * ज्ञान दीपिका भाग-१,२,३ (प्रत्येक) ५रुपया प्राप्ति स्थल१. ब्रह्मानन्द आश्रम, संत तारण तरण मार्ग, पिपरिया, जिला-होशंगाबाद (म.प्र.) ४६१७७५ २. श्री तारण तरण अध्यात्म प्रचार योजना केन्द्र, ६१ मंगलवारा, भोपाल (म.प्र.) ४६२००१ संपर्क सूत्र-फोन-पिपरिया (०७५७६) २२५३०, २४०१३ भोपाल-(०७५५) ७०५८०१,७४१५८६ -E-E KHELK E--E-ME E-
SR No.009724
Book TitleUpdesh Shuddh Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherAkhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj
Publication Year
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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