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________________ HAKK श्री उपदेश शुद्ध सार जी श्री उपदेश शुद्ध सार जी ***************** जयमाल ***************** -१मैं आतम शुद्धातम हूं, परमातम सिद्ध समान हूं। ज्ञायक ज्ञान स्वभावी चेतन, चिदानंद भगवान हूँ ।। अपना भ्रम अज्ञान ही अब तक, बना हुआ संसार है। सिद्ध परम पद पाना ही, उपदेश शुद्ध का सार है ॥ -२सद्गुरु तारण तरण के द्वारा, वस्तु स्वरूप को जाना है। भेदज्ञान तत्वनिर्णय करके, निज स्वरूप पहिचाना है। भूल स्वयं को भटक रहा था, अब भ्रमना बेकार है। सिद्ध परम पद पाना ही, उपदेश शुद्ध का सार है । -३खुद के मोह राग के कारण, कर्म बंध यह होते हैं । निज स्वभाव में लीन रहो तो, सारे कर्म यह खोते हैं । धर्म कर्म का मर्म अब जाना, जाना क्या हितकार है। सिद्ध परम पद पाना ही, उपदेश शुद्ध का सार है ।। -४जन्मे मरे बहुत दु:ख भोगे, चारों गति में भ्रमण किया। जिनको हमने अपना माना, किसी ने कुछ न साथ दिया । सबको तजकर निज को भजना, यही मुक्ति का द्वार है। सिद्ध परम पद पाना ही, उपदेश शुद्ध का सार है । -५धन, शरीर परिवार सभी यह, मोह माया का जाल है। कर्ता बनकर मरना ही तो, खुद जी का जंजाल है ।। धूल का ढेर जगत यह सारा, सब ही तो निस्सार है। सिद्ध परम पद पाना ही, उपदेश शुद्ध का सार है ॥ जयमाल ----- --- -६मति श्रुत ज्ञान की शुद्धि करना, बुद्धि का यह काम है। अब संसार में नहीं रहना है, चलना निज ध्रुव धाम है ॥ धुव तत्व की धूम मचाना, करना जय जयकार है। सिद्ध परम पद पाना ही, उपदेश शुद्ध का सार है ।। - ७द्रव्य भाव नोकमों से, यह चेतन सदा न्यारा है । टंकोत्कीर्ण अप्पा ममल स्वभावी, परमब्रह्म प्रभु प्यारा है। एक अखंड अभेद आत्मा, निज सत्ता स्वीकार है । सिद्ध परम पद पाना ही, उपदेश शुद्ध का सार है । - ८निज को जान लिया अब हमने, पर का भ्रम सब टूट गया । धर्म कर्म में कोई न साथी, मोह राग सब छूट गया ।। ज्ञानानंद निजानंद रहना, सहजानंद सुख सार है । सिद्ध परम पद पाना ही, उपदेश शुद्ध का सार है ।। - ९जिनवाणी मां जगा रही है. अब तो हम भी जाग गये । निज सत्ता स्वरूप पहिचाना, भ्रम अज्ञान भी भाग गये ॥ दृढ निश्चय श्रद्धान यही है, अब न मायाचार है । सिद्ध परम पद पाना ही, उपदेश शुद्ध का सार है ।। -१०वीतराग साधु बन करके, आतम ध्यान लगायेंगे । चिदानंद चैतन्य प्रभु की, जय जयकार मचायेंगे । मुक्ति श्री का वरण करेंगे, कहते यह शत बार हैं । सिद्ध परम पद पाना ही, उपदेश शद्ध का सार है ।। (दोहा) जन्म-मरण से छटना, उपदेश शुबका सार। जिनवर की यह देशना, करो इसे स्वीकार ॥ छोड़ो भ्रम अज्ञान को, दृढ़ता से लो काम । आतम ही परमात्मा, बैठो निज शुरधाम ।। 參考答者传者长卷卷卷
SR No.009724
Book TitleUpdesh Shuddh Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherAkhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj
Publication Year
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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