SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ** * 6--15-5-16 * ******* ** श्री उपदेश शुद्ध सार जी गाथा- १७७,१७८** * 22 पुत्र, परिवार, धन, वैभव, शारीरिक दु:ख बीमारी और संसारी कामना वासना के धारी हैं (दर्सन मोहंध अदेव देवं च) दर्शन मोहांध अदेव को देव मानता है। की पूर्ति के लिये इन अदेव कुदेव आदि की पूजा भक्ति मान्यता करता है, उसे (देवं च सल्य रहियं) परमात्मा तो शल्य से रहित होते हैं, जिनमें कोई * धर्म-कर्म वस्तु स्वरूप का ज्ञान ही नहीं होता, अपने आत्म स्वरूप को जानता माया, मिथ्या, निदान आदि शल्ये नहीं होती (देवं परिनाम सयल सुइ रुवी) * ही नहीं है इसलिये लोक मूढता, पाखंड मूढता में फंसकर यह देव मूढता में देव, परमात्मा के भाव सदा ही शुद्ध, सर्व श्रुतज्ञान स्वरूप होते हैं (देवं च लगा रहता है। परम देवं) जो देवों का देव है वही परमात्मा देव है (दर्सन मोहंध अनिस्ट देवं प्रश्न- क्या यह अदेव, कुदेव की पूजा भक्ति मान्यता करने से ॐ च) दर्शन मोहांध अनिष्टकारी रागी-द्वेषी देवों को देव मानता है। संसारी कार्य की सिद्धि हो जाती है? विशेषार्थ- अनंत चतुष्टय सहित अपने स्व समय में मग्न सहजानंद समाधान - नहीं, किसी की मान्यता से कोई कार्य सिद्धि नहीं होती। स्वभावी परमात्मा को देव कहते हैं, जिनसे सर्व श्रुत (आगम) ज्ञान प्रगट क्योंकि प्रत्येक जीव का परिणमन अपने-अपने कर्म उदयानुसार चलता है। हुआ है। जिनकी दिव्य देशना से जग जीवों का कल्याण होता है,जो सर्व हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ, यह सब भाग्यानुसार शल्य, विकल्पों से रहित अपने परम पारिणामिक स्वभाव में रहते हैं, जो ही होते हैं, इन्हें कोई भी टाल फेर बदल सकता नहीं है। सकल श्रुतज्ञान के आधार हैं ऐसे देवों के परम देव, परमात्मा सच्चे देव होते प्रश्न-फिर यह कुदेव, अदेव आदि की इतनी पूजा, भक्ति हैं। दर्शन मोहांध अदेवों को (पाषाण आदि की मूर्ति को) अथवा देव गति के मान्यता क्यों चल रही है? देवों को जो रागी-द्वेषी कुदेव होते हैं उन्हें देव मानता है। समाधान - अज्ञान और मोह की प्रबलता तथा कुगुरुओं का संग इसका जो अपने आत्म स्वरूप को जानता है वही सच्चे परमात्मा के प्रमुख कारण है तथा जीवों की खोटी होनहार होने से वैसे निमित्त मिलते हैं। ॐ स्वरूप को जानता है,जो परमात्मा के स्वरूप को जानता है वही अपने यदि यह मिथ्या मान्यता छूट जाये, सच्चे देव गुरु धर्म का सत्संग, श्रद्धान हो आत्मा के स्वरूप को जानता है। जाये तो मुक्ति का मार्ग बन जाता है। संसार के परिभ्रमण के लिये तो ऐसे ही आत्मा चीन्हे सो परमात्मा। जो अपने आत्म स्वरूप को नहीं जानता सारे योग निमित्त मिलते हैं। वह सच्चे परमात्मा के स्वरूप को भी नहीं जानता । दर्शन मोहांध अज्ञानी प्रश्न - सच्चे देव का स्वरूप क्या है? दर्शन मोहांध किसे देव प्राणी पर में एकत्व, अपनत्व मानता है, उसे भेदज्ञान तत्त्व निर्णय, वस्तु मानता है? स्वरूप का ज्ञान होता ही नहीं है इसलिये संसारी जीवों की देखादेखी, लोक इसके समाधान में सद्गुरु आगे गाथा कहते हैं मूढता, साम्प्रदायिकता, जाति-पांति के बंधन और वंश परंपरागत रूढ़िवादी अनन्त चतुस्टय सहियं, आचरनं चरन सयल सुइरूवी। होने से अदेव कुदेव आदि की मान्यता पूजा भक्ति करता रहता है, उन्हें अपने सहजानन्द सुभावं, दर्सन मोहंध अदेव देवं च॥१७७॥ कल्याणकारी इष्ट मानता है। देवं च सल्य रहियं, देवं परिनाम सयल सुइरूवी। प्रश्न- जो जीव संसारी कामना वासना को लेकर वेव अदेव आदि की पूजा मान्यता करते हैं वह दर्शन मोहांध अज्ञानी मिथ्यावृष्टि देवं च परम देव, दर्सन मोहंध अनिस्ट देवं च ॥ १७८॥ हैं परंतु जो किसी संसारी कामना वासना को नहीं चाहते, अपना आत्म अन्वयार्थ - (अनन्त चतुस्टय सहियं) देव परमात्मा का स्वरूप तो कल्याण करना चाहते हैं, संसार के जन्म-मरण से मुक्त होना चाहते अनंत चतुष्टय-अनंत दर्शन, अनंत ज्ञान, अनंत सुख, अनंत वीर्य सहित वह यदि अदेव, कुदेव आदिकी मान्यता पूजा भक्ति करते हैं. सच्चे होता है (आचरनं चरन सयल सुइ रूवी) जो स्वरूपाचरण चारित्र में रत रहते देव के स्वरूप को नहीं जानते तो ऐसे जीवों का क्या होगा? हैं जिनसे सर्व श्रुतज्ञान प्रगट हुआ है (सहजानन्द सुभावं) जो सहजानंद स्वभाव इसके समाधान में सद्गुरु आगे गाथा में कहते हैं१२७ ****** -E-E E-ME Here E-
SR No.009724
Book TitleUpdesh Shuddh Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherAkhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj
Publication Year
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy