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________________ Hश्री उपदेश शुद्ध सार जी विषयानुक्रम ---- विषयानुक्रम 器,倍多层多层司朵》卷y पृष्ठ 1-1-1-2-8- गाथा da+ १-३ us प्रथम-ज्ञान अधिकार विषय वस्तु पृष्ठ उपदेश शुद्ध सार का मूल आधार १३-१८ उपदेश ग्रहण करने में बाधक कारण मनुष्य का मन १८-२६ देव का स्वरूप २६-३० गुरू का स्वरूप ३१-३६ धर्म का स्वरूप ३७-३९ जिनवाणी के ज्ञाता पंडित का स्वरूप ४०-४७ जिनवाणी की महिमा ४८-५० आत्मज्ञान प्राप्ति का उपाय और फल ५१-६५ केवलज्ञान की महिमा ६५-६७ केवलज्ञान परमात्म पद प्राप्त करने का उपाय ६७-७१ सम्यक्त्व की शुद्धि ७२-७३ ज्ञान की शुद्धि ७४-७८ द्वितीय-राग मोहांध अधिकार संसार का कारण-राग भाव ७९-१२१ जनरंजन राग ७९-९७ कलरंजन दोष ९७-११३ मनरंजन गारव - ११३-१२३ दर्शन मोहांध १२३-१६१ सच्चे देव के स्थान पर अदेव कुदेवादि की मान्यता - १२४-१२८ सच्चे गुरू के स्थान पर अगुरु कुगुरु की मान्यता - १२८-१३२ सच्चे शास्त्र के स्थान पर अशास्त्र कुशास्त्र की मान्यता-१३२-१३४ सम्यकदर्शन के स्वरूप के प्रति विपरीत मान्यता - १३४-१३७ सम्यक्ज्ञान के स्वरूप के प्रति विपरीत मान्यता - १३७-१४५ सम्यक्चारित्र के स्वरूप के प्रति विपरीत मान्यता- १४५-१५० सम्यक्तप के स्वरूप के प्रति विपरीत मान्यता- १५०-१५२ दर्शन मोहांध की दृष्टि में संसार शरीर भोग, संसार परिभ्रमण का कारण - १५२-१६१ (संसार, शरीर, भोग, मन, इन्द्रिय) तृतीय-दृष्टि अधिकार विषय वस्तु गाथा दृष्टि का कार्य गुण-दोष १६२-१६४ २६०-२६६ शब्द सहकार दृष्टि १६४-१७१ २६७-२८३ काय दृष्टि १७१-१७६ २८४-२९४ संसार और कर्म परम्परा से छूटने का उपाय चिदानन्ददृष्टि १७६-१८३ २९५-३१० कर्म गलने का उपाय १८३-१८७ ३११-३१९ (स्वोन्मुखी दृष्टि से कर्माश्रव नहीं होता) कर्म विलाने का उपाय १८७-१९० ३२०-३२६ (ममल स्वभाव में रहने से पूर्व कर्म बंध विला जाते हैं) ज्ञानावरणादि घातिया कर्म क्या करते हैं इनसे छूटने का उपाय १९०-२०४ ३२७-३५६ (ज्ञानोपयोग और ज्ञानावरण का स्वरूप) (अक्षर, स्वर, व्यंजन, पद, अर्थ रूप ज्ञान) दर्शनोपयोग और दर्शनावरण कर्म का स्वरूप २०४-२११ ३५७-३७२ (चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवलदर्शन) मोहनीय कर्म का स्वरूप २११-२१५ ३७३-३७९ अंतराय कर्म का स्वरूप २१५-२२४ ३ ८०-३९१ चतुर्थ-ममल स्वभाव अधिकार ममल स्वभाव की महिमा २२४-२२८ ३९२-४०० भावक भाव आवरण (५७) २२८-२५५ ४०१-४५९ १.संसार सरणि २.ज्ञानावरण ३. परभाव ४. पर्याय ५.नो कर्म ६.भाव कर्म ७. द्रव्य कर्म ८. आर्त ध्यान ९.रौद्र ध्यान १०. मिथ्यात्व ११.अब्रह्म १२. अज्ञान १३. अनिष्ट भाव १४. कर्मोदय जन्य क्रिया १५. राग का राग १६.दोष १७.मन १८. वचन १९.कृत २०.कारित २१.अनुमति २२. भोग २३. उपभोग २४. असत् भाव २५. माया २६.कषाय २७. पर्यायी भाव २८.शल्य २९. लोभ ३०.क्रोध ३१.मान ३२.माया ३३. मोह ११. २३. २४. १२. ९०-१७० ९१-१२२ १२३-१५६ १५७-१७० १७१-२५९ १७३ - १८१ १८२-१९० १९१-१९५ १९६-२०२ २०३-२२२ २२३ -२३३ २३४-२३७ - 地布带些少年少年來說 २३८-२५९ ---------
SR No.009724
Book TitleUpdesh Shuddh Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherAkhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj
Publication Year
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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