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Our श्री श्रावकाचार जी
गाथा-४ ON यह देव गुरू शास्त्र कौन हैं और कहां से आये?
परमात्मा हुआ, यह अलग-अलग जीव आत्मा हुए या एक ही जीव आत्मा हुआ? सच्चे ज्ञानी गुरुओं द्वारा लिखी हुई शब्द रचना को शास्त्र कहते हैं तथा जिन्होंने कहने और देखने में तो यह अलग-अलग जीव आत्मा हुए, पर --- सच्चे देव या परमगुरू की बात सुनकर शुद्धात्मा की सच्ची श्रद्धा कर ली, जिन्हें हाँ-हाँ कहो, स्पष्ट कहो, यहाँ डरने संकोच करने की क्या बात है जब तत्व भेदज्ञान निज शुद्धात्मानुभूति हो गई तथा जो वीतरागी हो गये वह गुरू कहलाते हैं को समझने का प्रयास कर रहे हैं तो इसमें भय संकोच कैसा? विवाद थोड़े ही तथा सच्चे देव परमगुरू आप्त वह कहलाते हैं जो केवलज्ञानी वीतरागी सर्वज्ञ करना है, समझना है बोलो क्या बात है? हितोपदेशी सशरीरी होते हैं तथा अशरीरी अविकारी निष्कलंक पूर्ण शुद्ध सिद्ध यहाँ दो बातें हैं- जैन दर्शन तो कहता है कि अनन्त जीव हैं और सब जीव परमात्मा होते हैं।
स्वसत्ता शक्ति से स्वतंत्र हैं, स्वयं ही आत्मा से परमात्मा होते हैं तथा वैदिक हिन्द सच्चा गुरू जैसा तुमने बताया यह कोई मनुष्य होता है या जीव आत्मा होता दर्शन तथा अन्य दर्शन यह कहते हैं कि परमात्मा एक है और यह सब जीव उसके
S अंश हैं उसने ही पैदा किये हैं और इन सबका कर्ता-धर्ता वह परमात्मा है, जब मनुष्य भव में जो मनुष्य हैं इनमें से ही कोई विरला मनुष्य होता है। ॐ जिसको जैसा करना चाहता है वही करता है,जीव की स्वतंत्र सत्ता शक्ति अलग से
तो कोई विरला मनुष्य शरीर गुरू होता है या उसके अन्दर जो चैतन्य तत्व कुछ नहीं है तो इस कारण यह भेदभाव कुछ समझ में नहीं आता। जीव आत्मा है, इसका स्वबोध जागता है ज्ञान का विकास होता है तो वह गुरू ठीक है हम इसको भी समझने की कोशिश करेंगे क्योंकि मन में जरा सी भी होता है ?
कोई शंका हो तो चित्त में बात नहीं बैठती। उस शंका के कारण मन बार-बार जिसको स्वबोध जागता है, ज्ञान का विकास होता है वह गुरू होता है। अस्थिर इधर-उधर होता रहता है। जब तक मन की शंका का समाधान न हो तब तो वह कौन होता है; शरीर या जीव आत्मा?
तक आगे बात करना-सुनना व्यर्थ है। अब हम इस पर ही चर्चा करेंगे। जीव आत्मा।
अब यह बताओ कि इस शरीर से भिन्न चैतन्य शक्ति जीव आत्मा है, यह तो अब यह बताओ जो सच्चे देव परमगुरू आप्त कहलाते हैं जो सशरीरी समझ में आ गई है? केवलज्ञानी वीतरागी सर्वज्ञ हितोपदेशी होते हैं वह कौन होते हैं ?
हाँ,यह तो बिल्कुल स्पष्ट समझ में आ गई है। मनुष्य भव में ही कोई जीव आत्मा होते हैं।
अब यह बताओ कि वह जीव आत्मा सब शरीरों में एक ही है कि अलग-अलग है? जो अशरीरी अविकारी निष्कलंक पूर्ण शुद्ध सिद्ध परमात्मा होते हैं वह कौन वैसे तो सब शरीरों में अलग-अलग ही जीव आत्मायें हैं क्योंकि कभी कोई होते हैं?
हमरता है तो अकेला मरता है, दूसरा या सब एक साथ नहीं मरते तथा यहाँ वर्तमान वह भी जीव आत्मा-चैतन्य तत्व ही होते हैं।
१ में भी कोई सुखी-दुःखी, गरीब-निर्धन, कोई धनवान, कोई रोगी-निरोगी, कोई यह ज्ञानी गुरू सच्चे देव सर्वज्ञ परमात्मा और पूर्ण शुद्ध मुक्त सिद्ध परमात्मा - छोटा-बड़ा, कोई मोटा-दुबला होता है। इससे तो यही पता लगता है कि सब जीव कौन हुए?
- अलग-अलग हैं। मनुष्य भव में से ही कोई-कोई जीव आत्मा।
और यह पशु-पक्षी हैं, छोटे-बड़े जीव जन्तु हैं इनमें भी जीव आत्मा है या 0 यह ज्ञानी शुद्ध मुक्त होने की शक्ति जीव आत्मा में स्वयं है या किसी के करने नहीं है ? कराने से हुई?
इन सबमें भी चेतन शक्ति जीव आत्मा है, क्योंकि यह भी मरते-जीते हैं। नहीं, यह शक्ति तो स्वयं ही जीव आत्मा में है।
तो यह भी सब अलग-अलग जीव आत्मा हैं या एक ही हैं? कोई ज्ञानी गुरू हुआ, कोई केवलज्ञानी सर्वज्ञ परमात्मा हुआ, कोई सिद्ध नहीं, यह सब भिन्न अलग-अलग जीव आत्मा हैं।