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________________ DOO श्री श्रावकाचार जी गाचा-२४४.२४९ Oo आगे पाखंडी मूढ़ता का वर्णन करते हैं - कराने वाली है। पाडी मूड जानते, पापंड विभ्रम रतो सदा। (पाषंडी कुमति अन्यानी) पाषंडी साधु कमति और अज्ञान का धारी (कलिंगी। जिन उक्त लोपन) कुलिंगी मिथ्या भेषधारी जिन वचनों का लोप करने वाला परपंचं पुद्गलार्थ च, पाषंडी मूढ़ न संसयः ।। २४४ ।। * (जिनलिंगी मिश्रेन य) जो जिनलिंग को धारण करके उसमें मिलावट करता है अनृतं अचेत उत्पादंते, मिथ्या माया लोकरंजन। (जिन द्रोही वचन लोपन) वह जिनद्रोही जिनेन्द्र के वचनों का लोप करने वाला है। पाषंडी मूढ विस्वासं, नरयं पतंति ते नरा ॥ २४५॥ (पाषंडी उक्त मिथ्यातं) पाषंडी भेषी साधुओं के द्वारा कहे हुए मिथ्यात्व पाषंडी वचन विस्वासं, समय मिथ्या प्रकासये। ८ पोषक (वचनं विस्वास न क्रीयते) वचनों का विश्वास नहीं करना चाहिये (उक्तंच " सुद्ध दिस्टीच) ऐसा शुद्ध दृष्टि कहा गया है जो (दरसनं मल विमुक्तयं) सम्यक्दर्शन जिन द्रोही दुर्बुद्धि जेन, आराध्यं नरयं पतं ।। २४६ ।। के इन सब दोषों से पाखंडी आदि मूढ़ताओं से रहित होता है। पाषंडी कुमति अन्यानी, कुलिंगी जिन उक्त लोपनं। ॐ (मद अस्टमान संबंध) मान कषाय सम्बन्धी आठ प्रकार का मद (कषायं दोष जिनलिंगी मिशन य, जिन द्रोही वचन लोपनं ॥२४७॥ 3 विमुक्तयं) व अनन्तानुबंधी कषाय आदि दोषों से रहित (सुद्ध दृष्टि समाचरेत्) शुद्ध पाषंडी उक्त मिथ्यातं,वचनं विस्वास न क्रीयते। सम्यक्दृष्टि होता है (दर्सनं मलं न दिस्टते) जिसमें सम्यक्दर्शन के कोई मल दिखाई उक्तं च सुद्ध दिस्टी च, दरसनं मल विमुक्तयं ॥ २४८ ॥ नहीं देते। , विशेषार्थ- यहाँ पाखंड मूढता का स्वरूप बताया जा रहा है, वैसे पूर्व में भी मद अस्टं मान संबंध, कषायं दोष विमुक्तयं । S इसका कथन आ चुका है परन्तु तारण स्वामी ने सम्यकदर्शन की साधना में सम्यकद्रष्टि दर्सनं मलं न दिस्टंते, सुद्ध दिस्टि समाचरेत् ।। २४९ ॥ 5 को इन तीन मूढताओं से विशेष सावधान किया है; क्योंकि संसारी प्राणी इन्हीं तीन अन्वयार्थ- (पाषंडी मूढ जानते) जो मूढ पाखंडी आत्मज्ञान रहित साधुजाने मूढता- देव मूढता, पाखंड मूढता, लोक मूढता में रत रहते हैं। अव्रती सम्यक्दृष्टि जाते हैं (पाषंड विभ्रम रतो सदा) जो मिथ्यात्व भ्रम जाल में सदा आसक्त रहते हैं भी अभी संसारी संयोग गृहस्थ दशा में रहता है इसलिये इनसे बचकर रहना अत्यन्त (परपंचं पुद्गलार्थं च) जो इस पुद्गल शरीरादि के लिये ही सर्व प्रपंच जाल फैलाते । आवश्यक है। यहाँ पाखंड मूढता में गुरु के सम्बन्ध में बताया गया है कि कुगुरु की रहते हैं उनको गुरु मानना (पाषंडी मूढ़ न संसयः) पाषंड मूढ़ता है, इसमें कोई संशय मान्यता ही पाखंड मूढ़ता है। जो आत्मज्ञान से रहित पाखंड और भ्रम जाल में सदा नहीं है। ९ रत रहते हैं तथा शारीरिक क्रिया को ही धर्म मानते हैं, साधु का भेष बनाकर बड़ा (अनृतं अचेत उत्पादंते) जो अचेतन असत्य बातों को पैदा करते रहते हैं 3 प्रपंच फैलाते हैं उनको गुरु मानना, उनकी श्रद्धा भक्ति वन्दना करना पाखंड मूढ़ता (मिथ्या माया लोक रंजन) झूठी मायाचारी बातों में लोगों को फंसाते रंजायमान करते है। जगत में अनेक साधु दिगम्बर भेष में रहते हैं परन्तु न उनकी क्रिया ही मोक्षमार्ग रहते हैं (पाषंडी मूढ विस्वासं) ऐसे पाषंडी मूढ़ लोगों का विश्वास करने वाले (नरयं रूप है और न उनको निज शुद्धात्मा का ज्ञान ही है। जो स्वयं मिथ्यात्व भाव सहित ९ पतंति ते नरा) मनुष्यों को नरक में जाना पड़ता है। 5 हैं, जिनके संसार की लालसा छूटी नहीं है, जो परिग्रह बंधन के लोभी हैं, इन्द्रिय , (पाषंडी वचन विस्वासं) ऐसे पाखंडी साधुओं के वचनों पर विश्वास करना विषयों के लम्पटी हैं। स्वयं कुदेवों व अदेवों के उपासक हैं और वैसा ही अन्य को 7 (समय मिथ्या प्रकासये) जो झूठे आगम या मत का प्रकाश करते हैं (जिन द्रोही उपदेश देते हैं, जिनका जप-तपभजन आदिव अन्य उपदेश विहारादि सर्व क्रियाओं दुर्बुद्धि जेन) जो दुर्बुद्धि जिनेन्द्र परमात्मा के अनेकांतमत के शत्रु हैं व दुष्ट बुद्धि रखने का हेतु जगत का प्रपंच है। वे इस शरीर के लिये तथा आगामी उत्कृष्ट विषय भोगने १ वाले हैं (आराध्यं नरयं पतं) इनकी आराधना वन्दना भक्ति करना नरक में पतन योग्य शरीर पाने के लिये ही मनमानी साधना करते रहते हैं। जिन्हें हिंसा-अहिंसा
SR No.009722
Book TitleShravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherGokulchand Taran Sahitya Prakashan Jabalpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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