SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपनी बात श्री गुरु तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज द्वारा रचित चौदह ग्रंथ आगम और अध्यात्म के सिद्धांतों का जीवन में किस प्रकार प्रयोग करें इस रहस्य को अनुभव और साधना के आधार पर व्यक्त कर रहे हैं। ॐ नमः सिद्धम् मंत्र के आध्यात्मिक अभिप्राय को जिस प्रकार श्री गुरु तारण स्वामी ने स्पष्ट किया है वह अन्यत्र दुर्लभ है। ॐ नमः सिद्धम् मंत्र के अर्थ और अभिप्राय को श्री गुरु महाराज ने अपने सिद्ध स्वभाव की अनुभूति के तल में बैठकर स्पष्ट किया है, यह मंत्र अपने आपमें अत्यंत महिमामय स्वयं सिद्ध है। जैन जगत में ॐ नमः सिद्धम् और ॐ नमः सिद्धेभ्यः दोनों ही मंत्र श्रद्धास्पद हैं। ॐ नमः सिद्धेभ्यः बहुप्रचलित मंत्र है किंतु ॐ नमः सिद्धम् मंत्र के संबंध में जानने वाले लोग विरले ही हैं। श्री गुरु तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज के ग्रंथों में जब इस मंत्र को पाया तब गुरुवाणी का अतिशय बहुमान हृदय में जागृत हुआ और इस मंत्र की प्राचीनता, अर्थ और अभिप्राय को जानने समझने की जिज्ञासा प्रबल हुई जिसके परिणाम स्वरूप शोध खोज की यात्रा का शुभारंभ करते हुए सर्वप्रथम इस मंत्र से संबंधित चर्चा सन् १९९३ में बीना में व्याकरणाचार्य गोस्वामी श्री जानकीप्रसाद शास्त्री जी से हुई, आपसे मुझे सन् १९८० से ८२ के मध्य संस्कृत का अध्ययन करने को सौभाग्य प्राप्त हुआ । सन् १९९३ में आपसे इस चर्चा का प्रारंभ होते ही इस मंत्र के संबंध में चिंतन और खोज निरंतर बनी रही और यह अल्प सा प्रयास आपके समक्ष प्रस्तुत है। प्रसन्नता का विषय यह है कि परम श्रद्धेय अध्यात्म शिरोमणी पूज्य श्री ज्ञानानंद जी महाराज के मंगलमय आशीर्वाद से यह कृति संयोजित हुई है। इसके लेखन कार्य में श्रद्धेय गुरु जी का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ तथा बाल ब्रह्मचारी श्री आत्मानंद जी, बाल ब्रह्मचारी श्री शांतानंद जी, बाल ब्रह्मचारिणी बहिन उषा जी एवं तारण तरण श्री संघ के समस्त साधकों का समय-समय पर सहयोग प्राप्त हुआ । इस कृति के लेखन कार्य में ज्ञात अज्ञात भूलों के लिए सुधीजनों से क्षमायाचना सहित मार्गदर्शन प्रदान करने का निवेदन है। अपने सिद्ध स्वरूप का लक्ष्य बनाकर स्वानुभूति को प्रगटकर सभी भव्य जीव सिद्धत्व को प्रगट करें यही मंगल कामना है। ब्रह्मानंद आश्रम, दिनांक ५.३.२००३ पिपरिया ब्र. बसन्त अक्षर और अभिप्राय अक्षरों से मिलकर शब्द बनते हैं। शब्दों से मिलकर पद बनता है और पद से अर्थ का बोध होता है, ॐ नमः सिद्धम् पंचाक्षरी मंत्र है। अक्षर का अर्थ है जिसका कभी क्षरण न हो, इस अर्थ में केवलज्ञान ही परम अक्षर स्वरूप है इसकी विशेषता बताते हुए षट्खण्डागम ग्रंथ में कहा गया है। 'क्षरण भावा अक्खरं' केवलणाणं तस्स अनंतिम भागो पज्जाओ णाम मदिणाणं । तं च केवलणाणं णिरावणमक्खरं च एदम्हादो सुहुमणिगोदलद्धि अक्खरादो ज मुप्पज्जइ सुदणाणं तं पि पज्जाओ कज्जे कारणो वयारादो । (खण्ड एक, जीव स्थान पृष्ठ - ११) क्षरण अर्थात् विनाश का अभाव होने से केवलज्ञान अक्षर कहलाता है। इसका अनंतवां भाग पर्याय नाम का मतिज्ञान है। वह पर्याय नाम का मतिज्ञान केवलज्ञान के समान निरावरण और अविनाशी है। इस सूक्ष्म निगोद लब्धि अक्षर से जो श्रुतज्ञान उत्पन्न होता है, वह भी कार्य में कारण के उपचार से पर्याय कहलाता है। जैसा कि सिद्धांत चक्रवर्ती श्री नेमिचंद्राचार्य जी महाराज ने गोम्मट्टसार जीवकाण्ड नामक ग्रंथ की गाथा ३२२ में कहा है - सुहमणिगोदमपजत्तयस्स जादस्य पढ़म समयम्हि । फासिंदिय मदि पुव्वं सुदणाणं लद्धि अक्खरयं ॥ ३२२ ॥ अर्थ - निगोदिया लब्ध्यपर्याप्तक जीव के उत्पन्न होने के प्रथम समय में स्पर्शन इन्द्रियजन्य मतिज्ञान पूर्वक लब्ध्यक्षर रूप श्रुतज्ञान होता है। लब्धि का अर्थ प्राप्ति है, अन्य प्राप्ति भ्रमोत्पादक लब्धियां पर पदार्थात्मक होने से 'स्व' से अभिन्न नहीं है और हेय होने से उनका क्षय करना ही वांछनीय है तथा लब्धि आत्मलब्धि अर्थात् जीव का स्वरूप बोध है। लब्धि का साधन श्रुतज्ञान है, वह श्रुतज्ञान अक्षरात्मक है। अक्षर का अर्थ जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है कि जिसका कभी नाश न हो वह कभी क्षय भाव को प्राप्त न होने वाला एक आत्मा ही है इसलिए श्रुतज्ञान उस अक्षर स्वरूप परमात्म तत्त्व का वाचक है तथा श्रुत का साधनभूत अंग है। शास्त्र बिना अक्षर के ज्ञानोपदेश में समर्थ नहीं हो सकते अतः श्रुत के ज्ञान प्रबन्ध के उपदेष्टा शब्द भी अक्षरात्मक हैं और उनका सार स्वरूप आत्मा भी अक्षर अविनाशी है। अक्षर ज्ञान साधन है, शान्ति और सुख साध्य है। प्रस्तुत कृति में अध्यात्म रत्न बाल ब्रह्मचारी पूज्य श्री बसंत जी महाराज ने पंचाक्षर ॐ नमः सिद्धम् का अर्थ अभिप्राय तथा मंत्र प्राचीनता को प्राचीन ऐतिहासिक तथ्यों से, अध्यात्म *
SR No.009720
Book TitleOm Namo Siddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherBramhanand Ashram
Publication Year
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy