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और व्याकरण से सिद्ध किया है। यह अनुपम कृति श्री बसंत जी महाराज ने छिंदवाड़ा और अमरवाड़ा क्रमश: सन् २००० एवं २००१ में श्रावण माह की मौन साधना के समय लिखी है, मात्र दो माह में हुआ यह लेखन कार्य सदियों तक ॐ नमः सिद्धम् की महिमा को धरा पर बिखेरता रहेगा और सभी जीवों के लिए अपने सिद्ध स्वरूप का लक्ष्य बनाने में विशेष रूप से सहयोगी सिद्ध होगा ।
मंत्र जप का अप्रतिम महत्व होता है, जिसका उद्देश्य आत्मानुभूति को प्रगट करना है। इस कृति के माध्यम से सभी आत्मार्थी भव्य आत्माओं के अंतरंग में अपने सिद्ध स्वरूप की अनुभूति प्रगट हो तथा सभी जीवों के आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त हो यही पवित्र भावना है ।
अमरपाटन (सतना) दिनांक- ५-३-२००२
पं. राजेन्द्र कुमार जैन संयोजक
अखिल भारतीय तारण तरण जैन विद्वत् परिषद्
राग और वैराग्य
प्रत्येक जीव अपने भाग्य का विधाता स्वयं है, कोई किसी को सुख-दु:ख देने वाला नहीं है, समस्त जीव अपने-अपने पुण्य-पाप कर्म के अनुसार सुख-दुःख रूप फल भोग रहे हैं। संसार के विस्तार का प्रमुख कारण अज्ञान और मोह है। जहां तक 'मेरा-मेरा' ऐसी भावना है वहां तक मोह है, मोह के कारण ही विकार उत्पन्न होता है। राग भाव जीव को संसार में डुबाता है और विरक्ति का भाव जीव को संसार सागर से पार लगाता है। राग के समान संसार में दूसरा कोई दुःख नहीं है और त्याग वैराग्य के समान दूसरा कोई सुख नहीं है।
ॐ नमः सिद्धम् एक अपूर्व अन्वेषण
भारतीय वाङ्गमय में मंत्र जप और उसका स्वरूप अत्यंत सुन्दर रीति से समझाया गया है। चंचल मन को वश में करने का सच्चा उपाय मंत्र जप ही है। द्वादशांग वाणी में विद्यानुवाद पूर्व से मंत्रों का उद्भव हुआ है। श्री गुरु तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज ने ॐ नमः सिद्धम् मंत्र की सिद्धि श्री ज्ञान समुच्चय सार जी ग्रंथ में की है तथा अपने पांच मतों के १४ ग्रंथों में से श्री पंडित पूजा जी, श्री खातिका विशेष जी, श्री छद्मस्थवाणी जी आदि ग्रंथों में इस मंत्र का विशेष रूप से उल्लेख किया है।
प्रस्तुत कृति ॐ नमः सिद्धम् श्रद्धेय बाल ब्रह्मचारी श्री बसंत जी महाराज द्वारा सृजित एक अनुपम उपलब्धि है। इस कृति का मैंने आद्योपांत अवलोकन किया और पाया कि यह लेखन कार्य अत्यन्त शोध खोज पूर्वक किया गया है। इसमें ॐ नमः सिद्धम् मंत्र का अर्थ आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य में श्री गुरु तारण स्वामी द्वारा रचित ग्रंथ तथा जिनागम के अनेक प्रमाणों से स्पष्ट किया गया है। इसके साथ ही व्याकरण के परिप्रेक्ष्य में द्वितीया और चतुर्थी विभक्ति को स्पष्ट करते हुए व्याकरण के विभिन्न सूत्रों के द्वारा ॐ नमः सिद्धम् मंत्र की सिद्धि की गई है। कातंत्र व्याकरण के अनुसार भी ॐ नमः सिद्धम् मंत्र की व्युत्पत्ति स्वयं सिद्ध है। आध्यात्मिक और व्याकरण संबंधी प्रमाणों के अलावा ऐतिहासिक अनेक उदाहरणों से ॐ नमः सिद्धम् मंत्र की प्रचीनता और गरिमा स्वयमेव ही सिद्ध हो रही है, इस कृति के अपूर्व अन्वेषण का यह प्रत्यक्ष प्रमाण है। तारण समाज में इस प्रकार की यह अपने आपमें विलक्षणता को लिए हुए प्रथम रचना है, बाल ब्र. श्री बसंत जी महाराज के गहन अध्ययन एवं चिंतन की गहराई इस कृति में स्पष्ट झलक रही है ।
ॐ नमः सिद्धम् मंत्र की अपूर्व महिमा है, यह मंत्र सभी मंत्रों में विशिष्ट स्थान रखता है । ॐ नमः सिद्धम् मंत्र का अर्थ है- सिद्ध परमात्मा के समान निज सिद्ध स्वभाव को नमस्कार है। वृहद् द्रव्य संग्रह में पैंतीस, सोलह, छह, पांच, चार, दो और एक अक्षरी मंत्र का उल्लेख किया गया है कि इन मंत्रों का स्मरण, ध्यान करना चाहिये। इस निर्णय के अनुसार ॐ नमः सिद्धम् पांच अक्षरी मंत्र है ।
मंत्र का स्मरण जप फल की इच्छा रहित होना चाहिये, तब ही आत्म शांति • और आत्म शुद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है। जब तक हम सिद्ध परमात्मा के समान स्वयं के स्वरूप को नहीं समझेंगे तब तक यथेष्ट फल की प्राप्ति नहीं होगी ।
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