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धर्म का प्रचार होगा, जो आज प्रत्यक्ष अनुभव में आ रहा है।
श्रद्धेय बसंत जी की साधना, अध्ययन एवं लगन को देखकर मुझे बड़ा हर्ष होता है, मैं उनके भविष्य की मंगलमय कामना करता हुआ यही भावना भाता हूं कि वे इसी प्रकार आध्यात्मिक क्षेत्र में उच्चतम ख्याति प्राप्त कर भव्यजनों के उद्धार का मार्ग प्रशस्त करें ।
ॐ नम: सिद्धम् मंत्र के सांगोपांग स्वरूप का दिग्दर्शन कराने वाली इस कृति का स्वाध्याय, चिंतन, मनन करके सभी आत्मार्थी जीवों के अंतरंग में अपने सिद्ध स्वरूप का अनुभव प्रगट हो ऐसी मंगल भावना है।
आचवल वार्ड, पेट्रोल पंप के पीछे बीना , जिला - सागर (म. प्र.) फोन -२२४२१९ (०७५८०)
पं. जानकी प्रसाद गोस्वामी साहित्याचार्य, एम. ए. साहित्यरत्न
क्रम में यह मंत्र लोक परिहास्य को प्राप्त हो गया और 'ॐ नमः सिद्धम'मंत्र को लोग ओ ना मा सी धम् के रूप में स्मरण करने लगे, इस मंत्र के साथ-साथ चार पाटी पढ़ाने की भारत में विशेषता रही है। अभिप्राय यह है कि ओना मा सी धम, ॐ नम: सिद्धम् मंत्र का विकृत रूप है । इस मंत्र में सिद्धम् पद द्वितीयांत एक । वचन है। 'कर्मणि द्वितीया' आदि सूत्र इस मंत्र की सिद्धि के लिये मार्ग प्रशस्त करते हैं।
प्राचीनकाल से प्रचलित 'ॐ नम: सिद्धम्' मंत्र की भ्रान्तियाँ दूर करने की एवं एक निश्चित लक्ष्य को प्राप्त करने की श्रावकों में जिज्ञासा रही है। उस लालसा की पूर्ति हेतु तारण स्वामी की आध्यात्मिक परंपरा को आगे बढ़ाते हुए वर्तमान युग के उदीयमान नक्षत्र श्रद्धेय अध्यात्म रत्न बाल ब्रह्मचारी श्री बसन्त जी ने ॐ नम: सिद्धम् की विशद् आध्यात्मिक व्याख्या करके श्रावकों की जिज्ञासा को पूर्ण करने का भागीरथ प्रयत्न किया है। अनेक प्रान्तों में भ्रमण कर वहां से प्राप्त अनेक लेखों एवं हस्तलिपियों के आधार पर यह सिद्ध कर दिया है कि 'ॐ नम: सिद्धम्' अपौरुषेय महामंत्र है, अनादि निधन है और स्व पर के भेदज्ञान पूर्वक 'स्व' स्वरूप में स्थित रहने के लिए मूल आधार है। इस प्रकार ॐ नम: सिद्धम् मंत्र की प्राचीनता को ऐतिहासिक तथ्यों और प्रमाणों से सिद्ध करके भारतीय साहित्य विभाग को एक अनुपम कृति प्रदान की है।
प्रस्तुत कृति में ॐ नम: सिद्धम् मंत्र का आध्यात्मिक, इतिहास और व्याकरण के परिप्रेक्ष्य में शोध खोज पूर्ण चिंतन प्रस्तुत किया गया है। संवत् २०५८ सन् २००१ में ब्रह्मचारी जी के वर्षावास समापन समारोह के अवसर पर मुझे अमरवाड़ा जिला-छिंदवाड़ा जाने का शुभ योग बना,इस ग्रंथ का आद्योपांत अवलोकन किया। पूरा ग्रंथ देखने के बाद उसके बारे में क्या लिखू, पाठकजन स्वयं ही अवलोकन कर अपने जीवन को सार्थक बना सकेंगे। ग्रंथ में 'ॐ नमः सिद्धम्' की सार्थकता को सिद्ध करने के लिए वर्णमाला का आध्यात्मिक स्वरूप, सिद्ध शब्द का आध्यात्मिक स्वरूप, वर्णमाला का सार, अक्षर, स्वर, व्यंजन, पद और अर्थ का विश्लेषण, ऑकार की महिमा, बारहखड़ी, अक्षर बत्तीसिका, उपदेशी बारहखड़ी, दौलतराम जी कृत अध्यात्म बारहखड़ी का समावेश रचना में प्रामाणिकता प्रदान करता है।
इस आध्यात्मिक महत्वपूर्ण कृति के संपादन का सुअवसर मुझे प्राप्त हुआ, इससे मुझे अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। बीना में सन् १९८० से १९८२ के बीच ब्रह्मचारी जी के संस्कृत अध्ययन के समय ही उनकी ज्ञानार्जन की लगन और योग्यता देखकर ऐसा प्रतीत हुआ था कि इस प्रतिभा के द्वारा संपूर्ण देश में
ॐ नमः सिद्धं कहो सब,
विपत व्याध तन की भागे। इन्द्रिय के फाटक खोल देख,
केवल ज्ञान भीतर जागे॥ (श्रावक चंचलमल जी अल्लम वाले, बारहखड़ी छंद - ३८)