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श्लोक का अर्थजो परमात्मा ॐकार स्वरूप का अनुभव करते हैं, लोक और अलोक के प्रकाशक हैं। तीन लोक रूपी भुवन को प्रकाशित करने में जो ज्योति स्वरूप हैं, ऐसे देवों के देव को नमस्कार करता हूँ। अज्ञानरूपी तिमिर से अंधे जीवों के चक्षुओं (नेत्रों) को जो ज्ञानांजन रूपशलाका के द्वारा खोल देते हैं इसलिये ऐसे श्री गुरू को नमस्कार है। श्री परम गुरू अर्थात् केवलज्ञानी तीर्थंकर भगवंतों के लिये नमस्कार है और उनकी परम्परा में जो वीतरागी आचार्य भगवंत हुए हैं उन सबके लिये नमस्कार है।
विनती फूलना का अर्थश्री विरउ ब्रह्मचारी कहते हैं कि जिन तारण तरण (पूज्य गुरू महाराज) आपका उदय हुआ है, धन्य अवसर है। मेरी एक प्रार्थना सुनिये- आपकी कृपा से यह भव्य जीव जाग रहे हैं इनके कल्याणार्थ उपदेश देने की कृपा कीजिये॥१॥ हाँ जू (अत्यंत विनय सूचक संबोधन) गुरूदेव तारण जिन ! मेरी विनती पर ध्यान दीजिये। नन्द आनन्द चिदानन्द मय जिन स्वरूप का उपदेश प्रदान कीजिये जिससे कर्मों का उत्पन्न होना ही विला जाये॥२॥
विरउ ब्रह्मचारी की भक्ति भावनाचारों गतियों में भ्रमण करते हुए अपार दु:ख हुआ, कहीं भी सुख प्राप्त नहीं किया किन्तु ऐसे पंचम काल में जिन तारण गुरू महाराज का उदय हुआ है, जिन्होंने मुक्ति का मार्ग प्रगट किया है यथार्थ मोक्ष मार्ग दरसाया है॥३॥ ब्र. विरउ ने निवेदन किया कि "हे गुरूदेव ! यह दु:खमय विषमपंचम काल चंचल, अनिष्टकारी महा भयकंर है, इसमें हमें अपने इष्ट की दृष्टि उत्पन्न नहीं होती? गुरूदेव ने कहा - ज्ञान के बल से अपने इष्ट को संजोओ, इससे भय क्षय हो जायेंगे और कर्म विला जायेंगे॥४॥ विरउ ने कहा-संशय (भ्रम) के वश में होकर अनंत संसार में परिभ्रमण किया और अपार भय हुए तथा भयभीतपने की दृष्टि के कारण संसार में परिभ्रमण किया? गुरु महाराज ने कहा - हे भव्य ! स्वानुभव उत्पन्न करो, सभी भय विनस जायेंगे और कर्मों का उत्पन्न होना भी विला जायेगा ॥५॥ विरउ की जिज्ञासा - यह ज्ञानावरणादि द्रव्य कर्मों के आवरण उत्पन्न हो रहे हैं। इनके कारण हम शल्य, शंका और भय में संयुक्त हो जाते हैं ? समाधान - अपने ज्ञान स्वभाव में लीन हो जाओ, सभी ज्ञानावरणादि कर्म विला जायेंगे,भय क्षय हो जायेंगे और सिद्धि की संपत्ति प्राप्त होगी॥६॥ विरउ की जिज्ञासा- वज्र वृषभनाराच संहनन सहित यदि जीव हो, उत्कृष्ट संहनन प्राप्त हो तो मोक्ष के उपाय स्वरूप साधना तपश्चरण हो, भयों का विनाश हो और आत्मा शुद्ध प्रदेशी सिद्ध पद को प्राप्त करे सो ऐसा उत्कृष्ट संहनन इस काल में नहीं है? समाधान - इस पंचम काल में असंप्राप्तासृपाटिका सहनन प्राप्त हुआ है, औदारिक शरीर है, अपने उपयोग को स्वभाव में लगाओ इससे भय क्षय हो जायेंगे और तुम देखो कि स्वभाव से आत्मा अभी शुद्ध प्रदेशी सिद्ध स्वरूपी है॥७॥ विरउ की जिज्ञासा- जो चक्षु अचक्षु दर्शन हैं, इनसे संसार की उत्पत्ति हो रही है और अनन्त गुप्त भय लगे हुए है, ऐसे में क्या करें? समाधान-अपने तारण तरण स्वभाव को जान लो, जीत लो, प्रगट कर लो, ज्ञान स्वभाव की दृष्टि से भव और भय विला जायेंगे॥८॥