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________________ , तारन तरन सहावह विलियो सल्य संक विलयंतु । न्यान विन्यानह ममल सरुवे, भय पिपनिक मुक्ति पहुंतु ॥ ॥ हांजू ॥ ९ ॥ (नोट:- फूलना की अंतिम गाथा छोड़कर पढ़ें जिसे अचरी सहित आशीर्वाद के पहले वांचन करें।) या प्रकार आराध्य आराध्य अनंते जीव सिद्ध सिद्धालय को प्राप्त हुए। आदि में श्री आदिनाथ देव जी भये, अन्त में श्री महावीर देव जी भये बाईस तीर्थंकर मध्यानुगामी हुए। श्री चौबीसी जी को नाम लीजे तो पुण्य की प्राप्ति होय है। वर्तमान चौबीसी श्री ऋषभ अजित सम्भव अभिनन्दन, सुमति पद्मप्रभु छठे जिनेश्वर । सप्तम तीर्थंकर भये हैं सुपारस, चन्द्रप्रभ आठम हैं निवारस || पुष्पदंत शीतल श्रेयांस, वासुपूज्य अरू विमल अनंत । धर्मनाथ वंदत अविनीश्वर, सोलह कारण शांति जिनेश्वर । कुन्थु अरह मल्लि मुनिसुव्रत वीसा, नमूं अष्टांग नम इकवीसा । नेमिनाथ साहसि गिरि नेमि, सहनसील बाईस परीषह ॥ पारसनाथ तीर्थंकर तेईस, तीर्थकर तेईस वर्द्धमान जिनवर चौबीस I चार जिनेन्द्र चहुँ दिशि गये बीस सम्मेदशिखर पर गये ॥ आदिनाथ कैलाशहिं गये, वासुपूज्य चम्पापुर गये । नेमिनाथ स्वामी गिरनार, पावापुरी वीर जिनराज दो धवला दो श्यामला वीर, दो जिनवर आरक्त शरीर । हरे वरण दो ही कुलवन्त, हेमवरण सोला इकवंत ॥ चौबीस तीर्थकर मोक्ष गये, दश कोड़ाकोड़ी काल विल भये । भये सिद्ध अरू होंय अनंत, जे वन्दी चौबीस जिनेन्द्र ॥ वन्दी तीर्थंकर चौबीस वन्दों सिद्ध बसें जग शीश । वन्दी आचारज उवझाय || वन्दी साधु गुरुन के पांय ॥ , ५७ दोहा : : देव धरम गुरू को नमो नमो सिद्ध शिव क्षेत्र । विदेह क्षेत्र में जिन नमो, जिनके नाम विशेष ॥ विदेह क्षेत्र के बीस तीर्थंकर सीमन्धर स्वामी जिन नमों, मन वच काय हिये में धरों । युगमन्धर स्वामी युग पाय, नाम लेत पातक क्षय जाय ॥ बाहु सुबाहु स्वामी धर धीर, श्री संजात स्वामी महावीर | स्वयं प्रभ स्वामी जी को ध्यान, ऋषभानन जी कहें बखान ॥
SR No.009719
Book TitleMandir Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherAkhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj
Publication Year
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size1 MB
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