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शुभ भावों सहित मंदिर विधि करने से विशेष पुण्य का उपार्जन और आत्म कल्याण का मार्ग बनाने हेतु शुभ अवसर प्राप्त होते हैं ।
बृहद् मंदिर विधि - धर्मोपदेश प्रारंभ कैसे करें ? इस शीर्षक वाले विभाग में संपूर्ण विधि का स्पष्ट उल्लेख किया गया है तथा साधारण (लघु) मंदिर विधि के साथ ही प्रारंभ करने की विधि लिखी गई है, यथास्थान से विधि प्रारंभ करने का स्वरूप समझकर तदनुरूप मंदिर विधि करें।
मंदिर विधि कब कहाँ कैसी ?
तारण समाज में बृहद् मंदिर विधि- धर्मोपदेश और साधारण (लघु) मंदिर विधि करने की परम्परा प्रचलित है। बृहद् मंदिर विधि जिनागम के सार स्वरूप अगाध ज्ञान को अंतर्निहित किये हुए धर्मोपदेश है । तारण समाज के तीर्थक्षेत्रों पर, वार्षिक मेला के अवसरों पर, विशाल मेला महोत्सव के विराट आयोजनों में, नवीन चैत्यालयों की वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव के पावन प्रसंगों पर, पर्यूषण पर्व के अवसर पर या अन्य किन्हीं विशेष अवसरों पर बृहद् मंदिर विधि की जाती है। प्रत्येक माह की अष्टमी, चतुर्दशी आदि पर्व, सुख - दुःख और प्रसन्नता के अवसरों पर तथा प्रतिदिन भी साधारण (लघु) मंदिर विधि करने की परम्परा है।
जिन-जिन स्थानों पर समाज बन्धु निवास करते हैं, ऊपर लिखे अनुसार यथायोग्य अवसरों पर बृहद् मंदिर विधि - धर्मोपदेश और साधारण (लघु) मंदिर विधि अवश्य करें मंदिर विधि करते समय विद्वान पंडित वर्ग को धोती, कुर्ता, टोपी, दुपट्टा अवश्य ही धारण करना चाहिये और विनय भक्ति उमंग उत्साह पूर्वक मंदिर विधि संपन्न हो इस प्रकार मंदिर विधि का वांचन भाव पूर्वक करना चाहिये।
मंदिर विधि को रोचक तरीके से वांचन कर सभी को प्रेरणा प्रदान करना चाहिए बीच-बीच में मंदिर विधि के अंशों को समझाते हुए वांचन करना चाहिए। जिससे सभी का उपयोग मंदिर विधि में एकाग्र हो तथा अपना ऐसा प्रयास होना चाहिये कि आबालवृद्ध सभी को मंदिर विधि में बैठने और सुनने की आंतरिक जिज्ञासा, ' भावना बनी रहे । पद्यात्मक विषय छंद, चौपाई, दोहा, श्लोक आदि सस्वर सबके साथ मिलकर पढ़ना चाहिये । मंदिर विधि के संशोधन संपादन की आवश्यकता क्यों ?
सम्पूर्ण भारत वर्ष में लगभग ४५० से अधिक ग्राम, नगरों, शहरों में तारण समाज निवास करती है । अपने इष्ट के आराधन हेतु अखिल भारतीय तारण समाज के सभी स्थानों पर मंदिर विधि की जाती है। विशेष यह कि मंदिर विधि तो एक ही है, उसके कुछ अंश कुछ स्थानों पर आगे-पीछे पढ़े जाते हैं। कुछ स्थानों पर स्थानीय पूर्वज विद्वानों द्वारा बताई गई मंदिर विधि चल रही है, कुछ स्थानों पर स्थानीय किसी एक निश्चित हस्तलिखित प्रति के आधार पर मंदिर विधि की जा रही है। कुछ स्थानों पर साधर्मीजन जो करते हैं, उसके साथ किसी अन्य स्थान की परम्परा जो उन्हें अच्छी लगी या देखी उसको भी जोड़ लेते हैं। कुछ स्थानों पर स्थानीय मंदिर विधि करने वाले महानुभाव विद्वान द्वारा श्रद्धा पूर्वक जैसी मंदिर विधि कर दी जाती है, वही आनंद दायक हो जाती है। इस प्रकार मंदिर विधि तो एक ही है पर कहीं किसी क्रम से, कहीं किसी क्रम से की जाती है, इस प्रकार मंदिर विधि में विविधतायें चल रहीं हैं जब हमारी मंदिर विधि एक ही है तो सभी स्थानों पर एक जैसी होना चाहिये । समाज के त्यागीवृंद, विद्वत्जन और प्रबुद्ध वर्ग को यह अत्यन्त आवश्यक प्रतीत हुआ इन्हीं भावनाओं के परिणाम स्वरूप अखिल भारतीय तारण समाज में मंदिर विधि की एकरूपता के बारे में वर्षों से चर्चायें चल रही हैं। फलतः सन् २००१ में इटारसी में आयोजित ज्ञान ध्यान आराधना शिविर के अवसर पर अध्यात्म शिरोमणी पूज्य श्री ज्ञानानंद जी महाराज के आशीर्वाद से मंदिर विधि की एकरूपता के बारे में निर्णय लिया गया। सन् २००१ से सन् २००५ तक के समय में अखिल भारतीय तारण समाज के सभी नगरों, ग्रामों में