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________________ भ्रमण करके मैंने स्थानीय स्तर पर की जाने वाली मंदिर विधि का प्रायोगिक रूप से अध्ययन कर यह अनुभव किया कि मंदिर विधि में चल रही विविधताओं का होना सहज है क्योंकि विगत कई दशकों से किसी ने इस विषय पर पुनरावलोकन कर समाज को दिशा प्रदान नहीं की जिसके परिणाम स्वरूप जहाँ जैसा चल गया सो चल रहा है, इसमें कुछ स्थानों पर समयाभाव के कारण, कहीं आम्नाय की पूर्ण जानकारी के अभाव में, कहीं किसी अन्य कारण से भी अक्रम और अशुद्धि पूर्ण वांचन किया जाता है। इन सभी बातों पर विचार करके सकल तारण समाज में मंदिर विधि की एकरूपता बनाने के लिए और अशुद्ध वांचन को शुद्ध करने के उद्देश्य से मंदिर विधि का सम्पादन किया गया है। संपादन किस आधार पर किस प्रकार किया गया ? सम्पादन के समय हमारे पास मंदिर विधि धर्मोपदेश नित्य नियम पूजा पाठ आदि की कुल ४५ प्रतियाँ उपलब्ध थीं, जिनमें १० हस्तलिखित प्राचीन पांडुलिपियाँ सम्मिलित हैं। हस्तलिखित प्रतियों में खुरई से प्राप्त वि.सं.१९२८, १९७७ की दो प्रतियाँ । ग्यारसपुर से प्राप्त वि.सं.१९६२ की प्रति, गंजबासौदा से प्राप्त वि.सं.१९६९ की एक प्रति। बीना से प्राप्त वि.सं.१९३९-२०३९ की दो प्रतियाँ तथा अन्य चार प्रतियाँ जिनमें संवत् प्राप्त नहीं हुआ। इस प्रकार कुल १० प्रतियाँ थीं। मुद्रित प्रतियों में सबसे प्राचीन प्रति ग्यारसपुर कीथी जो २६.१०.१९४८ ई. का प्रकाशन है। विदिशा से प्राप्त ठिकानेसार का धर्मोपदेश वि.सं.१९४७ सन् १८९० का है। शेष प्रतियाँ वीर नि.सं.२४६५, तारण सं.४२४ वि.सं.२०११। सिंगोड़ी की वीर निर्वाण संवत् २४४४, २४५८ की प्रतियाँ, इसके अतिरिक्त सन् १९८६ से २००५ तक की २८ प्रतियां थीं, जिनमें छिंदवाड़ा, अमरवाड़ा, गुरैया की भावपूजा, गंजबासौदा, सागर, बीना, विदिशा, दमोह की मंदिर विधि, इटारसी की आराधना आदि सम्मिलित हैं। इन सभी प्रतियों में धर्मोपदेश और मंदिर विधि की विषय वस्तु एक जैसी है। अंतर मात्र इतना है कि कोई अंश किसी प्रति में पहले है, किसी प्रति में बाद में है। एक सी दो प्रतियों में संवर्धित विषय प्रसंग है। इन सभी प्रतियों का अध्ययन करने के पश्चात् बृहद् मंदिर विधि-धर्मोपदेश और साधारण (लघु) मंदिर विधि का स्वरूप लिपिबद्ध किया गया है। विशेष यह कि सभी प्रतियों में मंदिर विधि का एक सा ही स्वरूप है अत: कोई विशेष परिवर्तन नहीं किया गया है। जहाँ बहुत ही आवश्यक हुआ वहाँ अथवा जहाँ पंक्तियों में अशुद्धि ज्ञात हुई वहाँ आंशिक संशोधन किया गया है। संशोधन सम्पादन में प्राचीन और वर्तमान सभी प्रतियों को मूल आधार बनाया गया है उसमें तारण पंथ की गरिमा, आम्नाय की सुरक्षा और सिद्धांत की मर्यादा का विशेष ध्यान रखा गया है। मंदिर विधि की एकरूपता हेतु प्राप्त विद्वत्जनों के पत्रों के सुझाव का भी ध्यान रखकर सम्पादन का कार्य किया गया है । अत्यंत आवश्यकतानुसार और अशुद्धियों को शुद्ध करने हेतु जहाँ - जहाँ जो-जो भी आंशिक संशोधन किया गया है उससे संबंधित प्रश्नोत्तर माला जिज्ञासा और समाधान के रूप में दी गई है। इस प्रकार मंदिर विधि की कुल ४५ प्रतियों तथा विद्वत्जनों के पत्रों के सुझाव के आधार पर यह सम्पादन कार्य सम्पन्न किया गया है। मंदिर विधि को अर्थ सहित क्यों लिखा गया है ? __ मंदिर विधि का अर्थ और अभिप्राय आबालवृद्ध सभी को हृदयग्राही होवे इसी पवित्र उद्देश्य से मंदिर विधि को अर्थ सहित लिखा गया है। वर्षों से मन में भावना थी कि मंदिर विधि अर्थ सहित होना चाहिये, अंतरंग की भावना को अब साकार रूप में अनुभव करते हुए हृदय अत्यंत प्रमुदित है। इतनी विशाल और महान मंदिर विधि का कार्य मेरी अल्प बुद्धि से होना संभव नहीं है। श्री गुरू महाराज की परम कृपा, पूज्यजनों के आशीर्वाद और
SR No.009719
Book TitleMandir Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherAkhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj
Publication Year
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size1 MB
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