SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४ सोलह कारण भावना ॥दोहा॥ सोलह कारण भावना, भावें मुनि आनन्द । जिनको नाम स्वरूप कछु, लिखू सकल सुख कन्द || ॥चौपाई। आठ दोष मद आठ मलीन, छह अनायतन शठता तीन । ये पच्चीस मल वर्जित होय, दर्शन शुद्धि कहावै सोय ॥ १ ॥ रत्नत्रय धारी मुनिराय, दर्शन ज्ञान रचित समुदाय । इनकी विनय विर्षे परबीन, दुतिय भावना सो अमलीन || २ || शील भाव धारै समचित्त, सहस अठारह अंग समेत । अतीचार नहिं लागे जहाँ, तृतीय भावना कहिये तहाँ ॥ ३ ॥ आगम कथित अर्थ अवधार, यथाशक्ति निज बुधि अनुसार । करै निरन्तर ज्ञान अभ्यास, तुरिय भावना कहिये तास ॥ ४ ॥ ॥दोहा॥ धर्मी धर्म के फल विषै, बरतें प्रीति विशेष । यही भावना पंचमी, लिखी जिनागम देख ॥ ५ ॥ || चौपाई॥ औषधि अभय ज्ञान आहार, महादान यह चार प्रकार | शक्ति समान सदा निरबहे, छठी भावना धारक बहै ॥ ६ ॥ अनशन आदि मुक्ति दातार, उत्तम तप बारह परकार | बल अनुसार करै जो कोय, सोई सातमी भावना होय ॥ ७ ॥ यती वर्ग को कारण पाय, विघन होत जो करे सहाय । साधु समाधि कहावै सोय, यही भावना अष्टम होय ॥ ८ ॥ दश विधि साधु जिनागम कहे, पथ पीड़ित रोगादिक गहै | तिनकी जो सेवा सत्कार, यही भावना नवमी सार ॥ ९ ॥ परम पूज्य आतम अर्हन्त, अतुल अनन्त चतुष्टयवंत । तिनकी थुति नित पूजा भाव, दशम भावना भव जल नाव ॥ १० ॥ जिनवर कथित अर्थ अवधार, रचना करै अनेक प्रकार | आचारज की भक्ति विधान, एकादशम् भावना जान ॥ ११ ॥ विद्यादायक विद्यालीन, गुणगरिष्ट पाठक परवीन । तिनके चरण सदा चित्त रहै, बहुश्रुत भक्ति बारमी यहै |॥ १२ ॥
SR No.009719
Book TitleMandir Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherAkhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj
Publication Year
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy