________________
१५
परम सुभावह परम रउ, परम परम जिन उत्तु । परम लष्य गम अगम पउ, परम परम जिन उत्तु ॥ १६ ॥ ममलं ममल उवंनं, भय षिपिय ससंक विलयंति । कम उवनं विलियं, भय षिपनिक ममल पाहुडं बोच्छं ॥ १७ ॥
२. श्री गुरु दिप्ति गाथा (फूलना क्र.३) (विषय : गुरू को स्वरूप सहित नमस्कार, अंतरात्मा की महिमा और बहुमान) गुरु उवएसिउ गुपित रुइ, गुपित न्यान सहकार । तारन तरन समर्थ मुनि, गुरु संसार निवार ॥ ०१ ॥ संसय सल्य विमुक्कु गुरू, भय विलय अभय जिन उत्तु । अभय न्यान सुइ गुपित रुइ, न्यान विन्यान संजुत्तु || ०२ ॥ गुरु गरुवो गुरु नन्त पउ, गुरु दिप्ति दिस्टि दर्संतु | सब्द संजोए अमिय रसु, भय षिपिय ममल उवएसु ॥ ०३ ॥ दिप्ति उनि न्यान मइ, दिस्टि इस्टि संजुत्तु । दिप्ति विन्यान सु गुपित मउ, दिस्टि रिस्टि सं उत्तु ॥ ०४ ॥ दिप्ति सहाउ सु समय पउ, समय ममल जिन उत्तु। दिस्टि रिस्टि सुइ अमिय रसु, भय षिपिय ममल संजुत्तु || ०५ ।। दिप्ति विसेष निसंक पउ, कंष्या रहित जिनुत्तु। भय षिपिय सल्य सक विलय सुई, तं अमिय रमन विष भंजु || ०६ ॥ दिप्ति स उतउ व्रिति विलिय पउ, निव्रिति दिप्ति जिन उत्तु । दिस्टि सिस्टि सह दिस्टि मउ, गुरु अमिय रमन रस जुत्तु || ०७ ॥ दिप्ति रमनु जिन उवन पउ, उवन सहाउ संजुत्तु । दिस्टि उवन सहकार जिनु, भय षिपिय ममल जिन उत्तु || ०८ ॥ दिप्ति क्रांति षट् कमल जिनु, अवयास दिस्टि दिस्टंत । उवन हिययार सहयार रउ, ममल दिस्टि दर्संतु ॥ ०९ ॥ दिप्ति दिप्ति सुइ दिप्ति पउ, दिस्टि नन्त जिन उत्तु । भय सल्य संक विलयंतु गुरु, अमिय ममल सिद्धि रत्तु ॥ १० ॥ दिप्ति अनन्त जिनुत्तु जिनु, जनरंजन रागु विलंतु | अन्मोय दिस्टि भय षिपक जिनु, अन्मोय ममल दर्संतु ॥ ११ ॥ जं षिपियो नन्त सु कम्मु सुइ, तं मुक्ति इस्टि इस्टंतु | जं अमिय रमन विष विलय गुरू, तं ममल मुक्ति दर्संतु ॥ १२ ॥ जं सहाइ चउ रह गमनु, तं साधु समय जिन उत्तु । पर्जय भय सल्य संक गलियं, तं न्यान दिप्ति दर्सतु ॥ १३ ॥