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अनदिठु अनसुतु गुपित गुरू, अनहुँतु दर्स दर्सतु । गुपित गुहिज जै रमन मउ, तं गुपित मुक्ति जिन उत्तु ॥ १४ ॥ उवन उवन दिपि दिस्टि जिनु, उवनउ दाता देउ । गुरु गुपितह सुइ रमन पउ, तं अमिय रमन रस जुत्तु || १५ ॥ देउ दिप्ति हिययार सुइ, गुरु ग्रंथ सल्य भय चत्तु । गुपित रमन दर्संतु सुइ, गुरु सिद्धि मुक्ति सुइ उत्तु ॥ १६ ॥ परम गुपित परमप्प जिनु, पर पर्जय विलयंत । भय षिपनिक भव्वु जु अमिय मउ, ममल परम गुरु उत्तु ॥ १७ ॥ उवन हिययार सहयार मउ, गुरु परम मुक्ति दर्संतु | उवन हिययार सहयार सिरी, गुरु परम मुक्ति विलसंतु || १८ ॥
३. श्री धर्म दीप्ति गाथा (फूलना क्र.५) (विषय : धर्म का स्वरूप और धर्म को नमस्कार, तिअर्थ की महिमा) धम्मु जु उत्तउ जिनवरहं, अर्थति अर्थह जोउ । भय विनासु भवु जु मुनहु, ममल न्यान परलोउ ॥ १ ॥ अथेति अथेह भेउ मुनि, लषन रूव संजुत्तु । ममल न्यान सहकार मउ, भय विनास तं उत्तु ॥ २ ॥ उवंकार उन मई, हियंकार हिययारू । श्रींकारह संजुत्तु सिरी, ममल भाव सहकारू ॥ ३ ॥ उवन हिययार सहयार मउ, अर्थति अर्थ संजुत्तु । धम्मु जु धरियो ममल पउ, अमिय रमन जिन उत्तु ॥ ४ ॥ रमने रमियो ममल पउ, भय सल्य संक विलयंतु | अन्मोय न्यान भय षिपिय सुई, धम्मु धरिय जिन उत्तु ॥ ५ ॥ धम्मु जु धरियो ममल पउ, धरिय उवन जिन उत्तु । अर्क सु अर्क सु अर्क मउ, विंद विन्यान स उत्तु ॥ ६ ॥ अर्क सुयं जिन अर्क पउ, हिय अर्क रमन हिययार | गुपित अर्क सहकार जिनु, विंद रमन विन्यानु ॥ ७ ॥ पय अर्क ह पद विंद समु, पदह परम पद उत्तु । परमप्पय परमप्पु जिन, भय षिपिय अमिय रस उत्तु ॥ ८ ॥ अर्थति अर्थह अर्क समु, लघु दीरघ नहु दिट्तु । अर्क विन्द विन्यान समु, उत्पन्न भाउ सुइ इस्टु ॥ ९ ॥