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१. श्री देव दिप्ति गाथा (फूलना क्र.१) (विषय : औकास, ज्ञान स्वभाव में मुक्ति, ज्ञान स्वभाव की महिमा और उदय) तत्त्वं च नन्द आनन्द मउ, चेयननन्द सहाउ । परम तत्त्व पद विंद पउ, नमियो सिद्ध सुभाउ ॥ १ ॥ जिनवर उत्तउ सुद्ध जिनु, सिद्धह ममल सहाउ | न्यान विन्यानह समय पउ, परम निरंजन भाउ ॥ २ ॥ परम पयं परमानु मुनि, परम न्यान सहकार | परम निरंजन सो मुनहु, ममलह ममल सहाउ ॥ ३ ॥ भय विनासु भवु जु मुनहु, परमानंद सहाउ । परम निरंजन सो मुनहु, ममलह सुद्ध सहाउ ॥ ४ ॥ देव जु दि ह जिनवरह, उवनउ दाता देउ । न्यान विन्यानह ममल पउ, सु परम पउ जोउ ॥ ५ ॥ दिप्त दिप्ति तं दिस्ट समु, दिप्त दिस्ट सम भेउ । दिस्टि सब्द विवान सुइ, उत्पन्नउ दाता देउ ॥ ६ ॥ दिप्त दिस्ट सुइ नन्त मुनि, कमल इस्टि परमिस्टि । सुयं लब्धि तं रयन पउ, दिपि नन्त चतुस्टै संजुत्तु ॥ ७ ॥ अंगदि अंगह दिपि दिस्ट मउ, सब्द हिययार संजुत्तु । अर्थ तिअर्थ जु कमल रुइ, गिर दिप्त दिस्टि संजुत्तु ॥ ८ ॥ दिप्ति दिस्टि सुइ सब्द मउ, हिय हवयार संजुत्तु । अर्क विंद तं रमन पउ, उव उवनउ दाता देउ ॥ ९ ॥ उव उवन उवन हिययार पउ, सहयार दिप्ति संजोई । न्यान विन्यान जु दिस्टि मउ, दिपि दिस्टि देइ सुइदेउ ॥ १० ॥ जं जं उवन सहाव जिनु, दिपि दिस्टि उवन उव उत्तु । सब्द उवंनउ उवन मउ, उव उवन दिस्टि दर्सतु ॥ ११ ॥ जं दर्सिउ नन्तानन्त मउ, न्यान वीर्य विन्यानु । नन्त सौष्य सुइ परम पउ, तं देइ देउ उववंनु ॥ १२ ॥ परम न्यान तं परम पउ, परम भाव सोई भेउ । नन्तानन्त सु देउ पउ, परम देउ सोई देउ ॥ १३ ॥ नो उत्पन्न तं सो जिनई. जिनियो नन्तानन्त । नन्त उवन सुइ रमन मउ, जिन जिनवर सुइ उत्तु ॥ १४ ॥ परम उवन जो रमन मउ, परम न्यान सुइ जुत्तु । परम उवन जु जिनय जिनु, उववंन विली जिन उत्तु ॥ १५ ॥