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प्रश्न दर्शन करते समय किन भावनाओं का त्याग करना चाहिए ?
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जिनवाणी का दर्शन किस भावना से करना चाहिए ?
हे जिनवाणी माँ ! मेरे हृदय में सच्चे देव, गुरु, धर्म की भक्ति निरंतर बनी रहे । मेरे पाप कर्म शीघ्र ही क्षय हों । मेरे मन में निर्मल भावनायें रहें। मुझे शुद्धात्म स्वरूप की प्राप्ति हो । मैं अरिहंत, सिद्ध भगवान जैसा बनूँ । सम्यग्दर्शन प्राप्त करके मैं इस मनुष्य जीवन को सफल बनाऊँ ऐसी पवित्र भावना से जिनवाणी माँ का दर्शन करना चाहिये।
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धन, वैभव की प्राप्ति की भावना, पुत्रादि की प्राप्ति की भावना तथा राग - द्वेषात्मक समस्त अशुभ भावनाओं का त्याग करना चाहिए।
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यदि हम लोग जिनवाणी और सच्चे देव, गुरु, धर्म के सामने धन वैभव पुत्रादिक की भावना या कामना नहीं करेंगे तो यह सांसारिक वस्तुएँ हमें कैसे प्राप्त होगी ? सच्चे देव, गुरु, धर्म किसी को कुछ लेते देते नहीं हैं, हम शुभ भावों से दान, पूजा, दया, परोपकार आदि पुण्य के कार्य करते हैं उससे हमें शुभास्रव पुण्यबंध होता है, इस पुण्य के उदय से ही हमें सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। धन-वैभव आदि अनुकूल संयोग सब पुण्य के उदय से प्राप्त होते हैं इसलिये हमें सचे हृदय से भक्ति भाव पूर्वक पूजा आदि शुभ कार्य करना चाहिये।
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दर्शन करने के पश्चात् क्या करना चाहिये ?
दर्शन करने के पश्चात् कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़े होकर नौ बार णमोकार मंत्र पढ़ना चाहिये और फिर पञ्चांग या अष्टांग नमस्कार करना चाहिये ।
पञ्चांग या अष्टांग नमस्कार का क्या मतलब है ?
शरीर के पाँच या आठों अंगों से नमस्कार करना पञ्चांग या अष्टांग नमस्कार करना कहलाता है ।
शरीर में कितने अंग होते हैं ?
शरीर में आठ अंग होते हैं। जैसा कि श्री नेमिचंद्राचार्य जी ने गोम्मटसार जी ग्रंथ की २८ वीं कारिका में कहा है -
णालया बाहू व तहा, णियंब पुट्टी उरो य सीसो य
अद्वेव दु अंगाई, देहे सेसा उबंगाई ॥
दो पैर, दो बाहु (भुजायें), नितम्ब, पीठ, हृदय और मस्तक इस प्रकार शरीर में आठ अंग होते हैं तथा शेष उपांग कहलाते हैं।
पञ्चांग, अष्टांग या साष्टांग नमस्कार कैसे किया जाता है ?
हाथ जोड़कर दोनों घुटने जमीन पर टेककर, दोनों हाथ जमीन पर नीचे रखकर मस्तक हाथों
पर रखना और भाव पूर्वक प्रणाम करना पञ्चांग नमस्कार करना कहलाता है ।
छाती, घुटनों और सीने के बल लेटकर दोनों हाथ सीधे करके जो नमस्कार किया जाता है यह अष्टांग या साष्टांग नमस्कार कहलाता है।
नमस्कार करने के पश्चात् क्या करना चाहिये ?
नमस्कार करने के पश्चात् हाथ जोड़कर वेदी जी की तीन प्रदक्षिणा देना चाहिये।