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प्रश्न - दर्शन करते समय क्या बोलना चाहिये और क्या स्मरण करना चाहिये? उत्तर - दर्शन करते समय निर्मल भाव सहित स्थिर चित्त पूर्वक खड़े होकर हाथ जोड़कर सबसे पहले
णमोकार मंत्र, चत्तारि मंगल पाठ और नीचे लिखा दर्शन पाठ पढ़ना चाहिये - णमोकार मंत्र और चत्तारि मंगल पाठ सभी को याद है। दर्शन पाठ इस प्रकार है -
दर्शन पाठ दर्शन चित्स्वरूपस्य, दर्शन धूव शाश्वतं ।
दर्शनं शुद्ध तत्त्वस्य, मोक्षमार्गस्य साधनम् ॥ अर्थ - (दर्शनं चित्स्वरूपस्य) चैतन्य स्वरुप का दर्शन (दर्शनं ध्रुव शाश्वतं) शाश्वत ध्रुव स्वभाव का दर्शन (दर्शनं शुद्धतत्त्वस्य) शुद्धतत्त्व का दर्शन (मोक्षमार्गस्य साधनम्) मोक्षमार्ग का साधन है।
अरिहंत सिद्ध नत्वा, भावयामि निरंतरं ।
यथा पदं त्वया लब्धं, तथा च मे भवे प्रभो ॥ अर्थ - (अरिहंतं सिद्धं नत्वा) श्रीअरिहंत सिद्ध भगवान को नमस्कार करके (भावयामि निरंतरं)निरंतर
यह भावना भाता हूँ कि (यथा पदं त्वया लब्धं) जैसा वीतरागी जिनेन्द्र पद आपने प्राप्त कर लिया है (तथा च मे भवे प्रभो) हे प्रभो ! वैसा ही वीतरागी जिनेन्द्र पद मुझे प्राप्त हो।
रमते स्वानुभूतौ यः तारणं तरणं गुरुम् ।
आत्मनः दृष्टि संयुक्तं, भक्ति पूर्व नमाम्यहम् ॥ अर्थ - (यः) जो (स्वानुभूतौ) स्वानुभूति में (रमते) रमण करते हैं (ऐसे) (तारणं तरणं गुरुम) तारण
तरण गुरु को (आत्मनः दृष्टि से संयुक्त होकर (भक्तिपूर्व) भक्तिपूर्वक (नमाम्यहम) मैं नमस्कार करता हूँ।
द्रव्य भावस्य विभेद, श्रुतं जिनवचनमहो ।
मम कल्याणार्थ हदये, नित्यमेव प्रकाशताम् ॥ अर्थ - द्रव्यश्रुत और मम श्रुत के भेद से दो भेदरूप श्रुतज्ञानमयी जिनवचन मेरे कल्याणार्थ हृदय में
नित्य ही प्रकाशमान हों। (द्रव्य भावस्य) द्रव्यश्रुत और भाव श्रुत के भेद से (द्विभेदं) दो भेद रूप (श्रुतं) श्रुत ज्ञानमयी (जिनवचनम्) श्री जिनेन्द्र भगवान के वचन (अहो) अहो! (ममकल्याणार्थ हृदये) मेरे कल्याणार्थ हृदय में (नित्यम् एव) नित्य ही (प्रकाशताम्) प्रकाशमान हों।
शुद्ध धर्माश्रयं कृत्वा, चेतना लक्षणं अहो ।
नन्दानन्द प्रदातार, देव गुरं श्रुतं नमः ॥ अर्थ - (चेतना लक्षणं अहो) ! चैतन्य लक्षणमयी (शुद्ध धर्माश्रयं कृत्वा) शुद्ध धर्म का आश्रय करके
(नन्दानन्द प्रदातारं) नन्द, आनन्द, चिदानन्द, सहजानन्द और परमानन्द को प्रदान करने
वाले सच्चे देव, गुरु, शास्त्र को नमस्कार (भाव पूर्वक वन्दना) करता हूँ। प्रश्न - दर्शन करते समय नेत्र बंद क्यों हो जाते हैं? उत्तर - तारण पंथी श्रावक जब वेदी के सामने हाथ जोड़कर दर्शन करने के लिये तत्पर होता है, उस
समय नेत्र अपने आप बंद हो जाते हैं क्योंकि वह अपने देह देवालय में विराजमान शुद्धात्म देव परमात्म स्वरूप के दर्शन करता है।