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प्रश्न वेदी जी की तीन प्रदक्षिणायें क्यों की जाती हैं ?
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जाप हाथ में लेकर सबसे पहले सुमेरु के दाने को दोनों आँखों से और कंठ में लगाना पश्चात् मध्यमा (बीच की अंगुली) से जाप करना चाहिये ।
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सुमेरु के दाने को आँख में और कंठ में लगाने का क्या तात्पर्य है ?
सुमेरु नामक मुनि के जिस प्रकार परिणाम परिवर्तित हुए और उन्होंने सद्गति को प्राप्त किया उसी प्रकार हमारी भावना रहती है कि उनके समान हमारे ज्ञान नेत्र खुल जावें और हम भी मुक्ति के पात्र बनें। कंठ में लगाने से आशय है कि जिनवाणी हमारे कंठ में विराजमान होवे।
प्रश्न
जाप करते समय क्या सावधानी रखना चाहिये ?
उत्तर मन को एकाग्र करके जाप करना चाहिये, यदि जाप करते समय मन कहीं और भटक जाये तो
बुद्धि पूर्वक मन को छोटे बच्चे की तरह समझाकर पुनः मंत्रजप में लगाना चाहिये । जाप करते समय इधर – उधर देखना या जैसे-तैसे जाप पूरी करना, या नियम है इस कारण जाप करना है ऐसी भावना से जाप नहीं करना चाहिये बल्कि मंत्रजप से मेरी आत्मा का जागरण होगा, परिणाम निर्मल होगें, सम्यक्त्व की प्राप्ति का मार्ग बनेगा ऐसी पवित्र भावना से मंत्र जप करना चाहिये ।
मंत्रजप के पश्चात् क्या करना चाहिये ?
मंत्रजप के पश्चात् नियमित पूजा-पाठ करना चाहिये। तीन बत्तीसी का पाठ करना, मंदिर विधि करना, अध्यात्म आराधना में से षट्कर्म रूप भाव पूजा पढ़ना, देव गुरु शास्त्र की भाव पूजा पढ़ना आदि शुभ भावपूर्वक पूजा पाठ करना चाहिये ।
पूजा पाठ के पश्चात् स्वाध्याय किस प्रकार करना चाहिये ?
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II
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मंत्र स्मरण करते हुए वेदी जी की तीन प्रदक्षिणायें की जाती हैं, उस समय भाव यह रखना चाहिये कि हे जिनवाणी माँ ! मुझे सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की प्राप्ति हो । इस प्रकार रत्नत्रय की प्राप्ति के अभिप्राय से वेदी जी की तीन प्रदक्षिणायें की जाती हैं।
प्रदक्षिणा देने के बाद क्या करना चाहिये ?
प्रदक्षिणा देने के बाद शांति पूर्वक बैठकर मंत्रजाप करना चाहिये ।
मंत्रजप करने की क्या विधि है ?
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पूजा पाठ के पश्चात् स्वाध्याय करने के लिये निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिये । किसी ग्रंथ का विस्तार करके आद्योपांत स्वाध्याय करना चाहिए। हर दिन अलग- अलग ग्रंथों का स्वाध्याय करने से कुछ भी उपलब्ध नहीं हो सकेगा। स्वाध्याय करने से पूर्व ग्रंथ का मंगलाचरण वांचन करना चाहिये। जो कोई सिद्धांत की विशेष बात रुचिकर लगे उसे डायरी में नोट करना चाहिये। स्वाध्यायी जीव अपने आत्म कल्याण के उद्देश्य से स्वाध्याय करता है। स्वाध्याय को परम तप कहा गया है। मुझे सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति हो, मेरा आत्म कल्याण हो इस पवित्र अभिप्राय से स्वाध्याय करना चाहिये ।
स्वाध्याय क्यों करना चाहिये ?
पुण्य-पाप के स्वरूप को, धर्म - कर्म के मर्म को और मोक्षमार्ग के सच्चे स्वरूप को समझने