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श्री कमलबत्तीसी जी yopy जागरण सूत्र सकलन -4. सहजानंद (बाबा)
श्री कमलबत्तीसी जी सत्य धर्म का, आत्म कल्याण का लक्ष्य रहना चाहिये। श्री गुरू महाराज ने ऐसा ज्ञान का मार्ग दिया है जहां सारे विरोधाभास अपने आप समाप्त हो जाते हैं, मुक्ति मार्ग में कोई भेदभाव होता ही नहीं है।
प्रश्न-जब तारण पंथ भी जैन धर्म से जडाइआ है फिर आप किस पक्ष किस सम्प्रदाय का समर्थन करते हैं?
उत्तर- तारण पंथ जिनेन्द्र अनुगामी जिन दर्शन से जुड़ा हुआ है। यह महावीर की शुद्ध आम्नाय है। इसमें कोई पक्षपात सम्प्रदायवाद है ही नहीं। यहाँ तो शुद्ध बात बताई जाती है कि
एतत् संमिक्त पूजस्य, पूजा पूज्य समाचरेत् ।
मुक्ति श्रियं पर्थ सुद्ध, व्यवहार निश्चय शाश्वतं ॥ जैन धर्म में कोई भेद ही नहीं है। दिगम्बर - श्वेताम्बर सम्प्रदाय हैं और उनके भेद-प्रभेद जातियां हैं तथा निश्चय नय, व्यवहार नय पक्ष हैं और यह सब सामाजिक सांसारिक प्रवृत्तियां हैं, धर्म का इनसे कोई सम्बंध ही नहीं है। हम तारण पंथ अर्थात् मोक्षमार्ग और सत्य धर्म अर्थात् अपना शुद्धात्म स्वरूप उसके अनुयायी हैं। हम किसी पक्ष सम्प्रदाय का कोई समर्थन नहीं करते। यहां तो अनेकांत और स्याद्वाद को लेकर चलते हैं, यही जिन धर्म है जिसका तारण पंथ से सीधा संबंध है। हमारा किसी सम्प्रदाय से कोई संबंध नहीं है।
पण्डित शास्त्र के पीछे दौड़ता है, संत के पीछे शास्त्र दौड़ते हैं। शास्त्र पढ़कर जो बोले वह पंडित है, सत्य पाकर जो बोले वह संत है। पंडित जीभ से बोलता है, संत जीवन से बोलता है । जागा हुआ हर आदमी राम, कृष्ण, बुद्ध और महावीर है। सोया हुआ हर आदमी कंस-कमठ और रावण है। जागो, चिता जल उठे इससे पहले अपनी चेतना जगा लो। सत्ता के लिये दूसरों को मिटाना पड़ता है, सत्य के लिये स्वयं को मिटाना पड़ता है। सत्ता शाश्वत नहीं, सत्य शाश्वत होता है। सत्ता 'अहं' की पोषक है और सत्य 'अहम्' की साधना है। मन का रोग आधि है, तन का रोग व्याधि है, पद का रोग उपाधि है और इन तीनों रोगों की एक दवा समाधि है। मनुष्य देह एक सीढ़ी है, इस सीढ़ी पर चढ़कर तुम प्रभु हो सकते हो और नीचे उतर कर पशु बन सकते हो, पशु बनना है या प्रभु? निर्णय तुम्हारे हाथ में है। भक्त प्रार्थना करता है और कमबख्त याचना करता है, आज मंदिरों में भक्तों की नहीं, कमबख्तों की भरमार है। धर्म लड़ना नहीं, लाड़ (प्रेम) करना सिखाता है, भारत की संस्कृति खिलाकर खाने की है, जो खिलाकर खाता है वह हमेशा
खिलखिलाता है। ८. धर्म का संबंध जाति से नहीं, जीवन से है, आचरण से है। धर्म जीवन
का अंतिम चरण नहीं,जीवन का मंगलाचरण है। धर्म पंथ नहीं, पथ देता है, जिस पर चलकर परमात्मा बना जा सकता है। आज मनुष्य हंसना भूल गया है, यही कारण है कि दुनियां में इतने पाप हो रहे हैं। स्मरण रहे, हंसता हुआ आदमी कभी पाप नहीं करता, सारे
पाप-उदासी, दु:ख व क्रोध के कारण होते हैं। १०. राम का समग्र जीवन अनुकरणीय है, श्रीकृष्ण का उपदेश अनुकरणीय
है। राम ने जो किया वह तुम्हें करना है, कृष्ण ने जो कहा है वह तुम्हें
करना है। राम धर्मयुग है और कृष्ण युग धर्म है। ११. मृत्यु, जीवन का परम सत्य है। इस जीवन में पद, पैसा, पत्नी, परमात्मा
इस वर्ष भारत भ्रमण में बहुत अच्छे अनुभव आये, संसार और समाज का स्वरूप समझने को मिला। वर्तमान में जीव कैसे जी रहे हैं यह प्रत्यक्ष देखने को मिला। इन सब कारणों से वीतराग भाव की वृद्धि हुई,धर्म के प्रति बहुमान आया, साधना की दृढ़ता बनी।
जगह-जगह सभी तरह के प्रश्न पूछे गये, उनमें से कुछ विशेष प्रश्नोत्तर आप सबकी जिज्ञासा हेतु लिखे हैं, आशा है आप संतुष्ट होंगे। वैसे, श्री मालारोहण, पण्डित पूजा, कमल बत्तीसी जी की टीकाओं में आपके सभी प्रश्न शंकाओं का समाधान हो जायेगा, आप श्रद्धापूर्वक स्वाध्याय करें।
अंत में, तारण तरण श्री संघ के इस वर्ष (सन् १९९९) के भ्रमण समापन अवसर पर आपका हार्दिक अभिनन्दन.....!
तारण स्वामी का शुभ संदेश "तू स्वयं भगवान है।"
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