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श्री कमलबत्तीसी जी
श्री कमलबत्तीसीजी
ज्ञान विराग के बल से इनका, मिटता नाम निशान है। कमल बत्तीसी जिसकी खिल गई, बनता वह भगवान है ॥
ॐ जागरण गीत
नन्द आनंदह चिदानंद जिन, परमानंद स्वभावी हूँ। पर पर्याय से भिन्न सदा मैं, ममलह ममल स्वभावी हूं। ममल स्वभाव में लीन रहे जो, वह नर श्रेष्ठ महान है । कमल बत्तीसी जिसकी खिल गई. बनता वह भगवान है।
रत्नत्रय की शुद्धि करके, पंच महाव्रत धारी है । पंचज्ञान पंचार्थ पंचपद, पंचाचार बिहारी है ॥ ज्ञान-ध्यान में लीन सदा जो, साधु सिद्ध समान है। कमल बत्तीसी जिसकी खिल गई, बनता वह भगवान है ।
९. ज्ञानानंद निजानंद रहता, सब प्रपंच से दूर है ।
वस्तु स्वरूप सामने दिखता, ब्रह्मानंद भरपूर है ।। आर्त-रौद्र ध्यानों का त्यागी, धर्म शुक्ल ही ध्यान है। कमल बत्तीसी जिसकी खिल गई, बनता वह भगवान है ।
जागो हे भगवान आत्मा, जागो हे भगवान ।।
मोह नींद में क्यों सो रहे हो ।
अपनी सत्ता क्यों खो रहे हो ॥ तुम हो सिद्ध समान आत्मा, जागो हे भगवान ॥१॥
नर भव में यह मौका मिला है।
सब शुभ योग सौभाग्य खिला है। क्यों हो रहे हैरान आत्मा, जागो हे भगवान ॥२॥
इस शरीर से तुम हो न्यारे ।
चेतन अनन्त चतुष्टय धारे । तोड़ो मोह अज्ञान आत्मा, जागो हे भगवान ॥३॥
पर के पीछे तुम मर रहे हो।
पाप परिग्रह सब कर रहे हो । भुगतो नरक निदान आत्मा, जागो हे भगवान ॥४॥
तुम हो शुद्ध बुद्ध अविनाशी ।
चेतन अमल सहज सुखराशी ।। कर लो भेद विज्ञान आत्मा, जागो हे भगवान ॥५॥
आयु तक का सब नाता है ।
मोह यह तुमको भरमाता है। देख लो सब जग छान आत्मा, जागो हे भगवान॥६॥
कर्म प्रधान विश्व करि राखा ।
जो जस करहिं सो तस फल चाखा। करो धरम पुण्य दान आत्मा, जागो हे भगवान ॥७॥
तारण तरण हैं तुम्हे जगा रहे।
मुक्ति मार्ग पर तुम्हें लगा रहे ॥ पाओ पद निर्वाण आत्मा, जागो हे भगवान ॥८॥
, जिनवर कथित सप्त-तत्वों का, जो निश्चय श्रद्धानी है।
सब संसार चक्र छोड़कर, शरण गही जिनवाणी है ॥ के वलज्ञान प्रगट करके वह, पाता पद निर्वाण है । कमल बत्तीसी जिसकी खिल गई, बनता वह भगवान है ॥
(दोहा) सम्यम्चारित्र आत्मा, निज स्वभाव में लीन । अन्तर रत्नत्रय धरें, बाह्य-चारित्र दश तीन । कमल बत्तीसी प्रगटकर, बनता खुद भगवान। साधु पद से सिद्ध पद, पाता पद निर्वाण ||