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________________ श्री कमलबत्तीसी जी श्री कमलबत्तीसी जी श्री कमलबत्तीसी जी जयमाल परमदेव परमात्म तत्व का, निज में दर्शन करता है। पंचज्ञान परमेष्ठी पद की, जो श्रद्धा उर धरता है । सरल शान्त निर्विकल्प हो गया, वह ज्ञानी गुणवान है। कमल बत्तीसी जिसकी खिल गई, बनता वह भगवान है ॥ * तत्व मंगल* देव को नमस्कार तत्वं च नंद आनंद मउ, चेयननंद सहाउ । परम तत्व पद विंद पउ, नमियो सिद्ध सुभाउ ॥ गुरू को नमस्कार गुरू उवएसिउ गुपित रूइ, गुपित न्यान सहकार। तारण तरण समर्थ मुनि, गुरू संसार निवार ।। धर्म को नमस्कार धम्मु जु उत्तउ जिनवरहि, अर्थति अर्थह जोउ । भय विनास भवु जु मुनहु, ममल न्यान परलोउ ।। देव को, गुरू को, धर्म को नमस्कार हो। २. सभी जीव परमात्म तत्व हैं, अनन्त चतुष्टय धारी हैं। जड़ शरीर कर्मादि पुद्गल, इनकी सत्ता न्यारी है ॥ निमित्त नैमित्तिक संबंध पर्यायी, इसका जिसको ज्ञान है। कमल बत्तीसी जिसकी खिल गई, बनता वह भगवान है॥ कमों का नश्वर स्वभाव है, अपने आप सब झड़ते हैं। जीव शुभाशुभ भाव के द्वारा, पुण्य-पाप से बंधते हैं। शुद्ध स्वभाव में लीन जीव के, कर्मों का श्मशान है। कमल बत्तीसी जिसकी खिल गई. बनता वह भगवान है॥ स्व सत्ता पर के स्वरूप का, जिसको सम्यग्ज्ञान जगा । मिथ्यात्व शल्य आदि का, भ्रम-भय सब अज्ञान भगा ॥ सारे कर्म विला जाते हैं, धरता आतम ध्यान है । कमल बत्तीसी जिसकी खिल गई, बनता वह भगवान है । * मंगलाचरण * मैं ध्रुवतत्व शुद्धातम हूँ, मैं धुवतत्व शुद्धातम हूँ । मैं अशरीरी अविकारी हूँ, मैं अनन्त चतुष्टयधारी हूँ। मैं सहजानंद बिहारी हूँ, मैं शिवसत्ता अधिकारी हूँ॥ मैं परम ब्रह्म परमातम हूँ, मैं धुवतत्व शुद्धातम हूँ ... मैं ज्ञेय मात्र से भिन्न सदा, मैं ज्ञायक ज्ञान स्वभावी हूँ। मैं अलख निरंजन परम तत्व,मैं ममलह ममल स्वभावी हूँ। मैं परम तत्व परमातम हूँ, मैं धुवतत्व शुद्धातम हूँ.... मैं निरावरण चैतन्य ज्योति, मैं शाश्वत सिद्ध स्वरूपी हूँ। मैं एक अखंड अभेद शुद्ध, मैं केवलज्ञान अरूपी हूँ॥ मैं ज्ञानानंद सिद्धातम हूँ, मैं धुवतत्व शुद्धातम हूँ.... ५. मन मनुष्य की जाग्रत शक्ति, बंध मोक्ष का कारण है। इसके भेद को जानने वाला, कहलाता गुरू तारण है ॥ आतम शक्ति जाग्रत होती, मन होता अवसान है । कमल बत्तीसी जिसकी खिल गई, बनता वह भगवान है॥ जनरंजन मनरंजन गारव, कलरंजन भी दोष है । आतम के यह महाशत्रु हैं, यही तो राग और रोष हैं।
SR No.009717
Book TitleKamal Battisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherBramhanand Ashram
Publication Year1999
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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