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अपनी बात
सदगुरु की वाणी अमृत तुल्य साधक संजीवनी है। इसका प्रत्यक्ष अनुभव हुआ, परम सौभाग्य, होनहार उत्कृष्ट होने से छह माह की सहज मौन साधना करने का शुभ योग मिला, इसमें क्या मिला ? क्या हुआ ? यह तो अवक्तव्य है, बस इतना ही कहा जा सकता है कि सद्गुरू की कृपा से बड़ा आनंद आया, पूर्ण निराकुलता से अच्छा ज्ञानोपयोग हुआ, वस्तु स्वरूप समझ में आया, शेष अपनी पात्रता पुरुषार्थ की बात है।
“स्वान्तः सुखाय आत्मीय गाथा' अनुसार सहज में अपना काम बन गया, स्वाध्याय करने में इतना उपयोग न लगने से लिखने की प्रेरणा ब्र. श्री नेमी जी ने दी, उसी क्रम में श्री मालारोहण जी, श्री पंडितपूजा जी, श्री कमलबत्तीसी जी इन तीन ग्रंथों का रहस्य समझने का प्रयास किया।
आज आत्म विश्वास सहित बड़े गौरव से यह बात कह रहा हूं कि सद्गुरू तारण स्वामी की वाणी उनके ग्रंथ अद्भुत गंभीर रहस्य से भरे हैं। यह अनुभव के आधार पर आगम प्रमाण लिखे ग्रंथ हैं। इनका स्वाध्याय, मनन, आत्मानुभूति कराने में समर्थ है।
जो टीका लिखी है उसमें मेरा कुछ नहीं है। सद्गुरू की वाणी आगम प्रमाणित करने का प्रयास किया है। बुद्धि का क्षयोपशम न होने से सामान्य ही लिख सका हूं। विशेष ज्ञानी विद्वान लिखें ऐसी अपेक्षा है। इसमें जो अज्ञान प्रमाद वश भूल हुई हो, गलत लिखा गया हो। वह सद्गुरू क्षमा करें, ज्ञानी विद्वत्जन सुधार कर सही कर लें।
अंत में, जो आचार्यों ने छह माह की साधना करने का आदेश दिया है। उसकी प्रामाणिकता को अपनी साधना से प्रमाण करता हूँ कि उनका कथन सत्य है, ध्रुव है, प्रमाण है।
ਕਦੇ
दिनांक २७.५.९१
ज्ञानानन्द
वन्दे श्री गुरू तारणम्
श्री कमलबत्तीसी जी ग्रंथ
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परमदेव परमात्म तत्व का, निज में दर्शन करता है। पंचज्ञान परमेष्ठी पद की, जो श्रद्धा उर धरता है ॥ सरल शान्त निर्विकल्प हो गया, वह ज्ञानी गुणवान है। कमल बत्तीसी जिसकी खिल गई, बनता वह भगवान है ॥
तारण स्वामी का शुभ संदेशतू स्वयं भगवान है।
जो बोले सो अभयशुद्धात्म देव की जय ।
उपदेश, दृष्टि प्रवेश मुक्ति विलास