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________________ अर्थ- सम्यक्दृष्टि ज्ञानी क्षयोपशम प्रमाण सम्पूर्ण मति श्रुत ज्ञान के बल से पंचम केवलज्ञानमयी ध्रुव स्वभाव को जानते हैं, अनुभव करते हैं, केवलज्ञानमयी स्वभाव की आराधना में रत रहते हैं, इस प्रकार वह ज्ञानी ज्ञानमयी शास्त्र की सम्यक् पूजा करते हैं। प्रश्न १- ज्ञानी ज्ञानमयी शास्त्र की पूजा किस प्रकार करते हैं? । उत्तर - सम्यक्त्व सहित मति श्रुतज्ञान के बल से सम्यक्दृष्टि पंचम केवलज्ञानमयी अविनाशी शुद्ध स्वरूप का अनुभव करते हैं। ज्ञानमयी शुद्धात्मा को जानते हैं। इस प्रकार निज स्वरूप का श्रद्धान, ज्ञान और अनुभव करने से वे ज्ञानमयी शास्त्र (जिनवाणी) की सच्ची पूजा करते हैं। प्रश्न २- जिनवाणी की क्या महिमा है? उत्तर - जिनवाणी ज्ञान का बोध कराने वाली है। जिनवाणी न हो तो यथार्थ वस्तु स्वरूप को समझा नहीं जा सकता। महावीर भगवान को केवलज्ञान होने के पश्चात् छ्यासठ दिन तक दिव्यध्वनि नहीं खिरने से धर्म की प्रभावना नहीं हुई, जीव सत्य वस्तु स्वरूप को नहीं समझ सके । जब दिव्य ध्वनि प्रगट हुई, वाणी खिरी तब जीवों ने धर्म का स्वरूप समझा और तद्रूप आचरण कर मुक्ति मार्ग पर चले, यह सब जिनवाणी का महात्म्य है। प्रश्न ३- व्यवहार और निश्चय से जिनवाणी की आराधना पूजा कैसे की जाती है? उत्तर - द्वादशांग रूप जिनवाणी बाह्य निमित्त है। जिनवाणी की विनय और बहुमान करना तथा रुचि पूर्वक स्वाध्याय मनन करना व्यवहार से जिनवाणी की आराधना है । अन्तर में अपने ज्ञान स्वभाव का बोध, सुबुद्धि का जागरण, सम्यक् मति-श्रुतज्ञान का होना निश्चय जिनवाणी है। ज्ञानी पंडित को निश्चय - व्यवहार का यथार्थ ज्ञान होता है। निश्चय नय से अपने पंचम ज्ञानमयी ध्रुव स्वभाव की साधना आराधना करना ज्ञानमयी जिनवाणी की सच्ची पूजा है। गाथा-६ सच्चा देव गुरू शास्त्र धर्म निज शुद्धात्मा उ हियं श्रियंकार,दरसनं च न्यानं धुवं । देवं गुरं सुतं चरन, धर्म सद्भाव सास्वतं ॥ अन्वयार्थ - (उवं) ॐकार मयी [शुद्ध स्वरूपी] (हियं) हियंकार पूर्ण ज्ञान स्वरूप] (श्रियंकार) श्रियंकार - शुद्ध भाव से अलंकृत [मोक्षलक्ष्मी स्वरूप] (दरसन) सम्यग्दर्शन (न्यान) सम्यग्ज्ञान (चरन) सम्यक्चारित्र मयी [आत्मा का] (सास्वतं) शाश्वत (धुर्व) ध्रुव (सद्भाव) स्वभाव ही (देव) सच्चा देव (गुरं) सच्चा गुरू (सुत) सच्चा शास्त्र (च) और (धर्म) सच्चा धर्म है। अर्थ- ॐकारमयी शुद्ध स्वरूपी, हियंकार अर्थात् पूर्ण ज्ञान स्वरूप, श्रियंकारमयी शुद्ध भाव से अलंकृत, मोक्षलक्ष्मी स्वरूप सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र मयी आत्मा का शाश्वत ध्रुव स्वभाव ही सच्चा देव, गुरु,शास्त्र और धर्म है। प्रश्न १- 'उर्व हियं श्रियंकारं 'इस गाथा में देव गुरु धर्म शास्त्र किसको कहा है? उत्तर - ॐकार, ह्रियंकार, श्रियंकार स्वरूप सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्रमयी निज शुद्धात्मा को देव गुरु धर्म शास्त्र कहा है।
SR No.009716
Book TitleGyanpushpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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