SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७६ अध्यात्म ही संसार के, क्लेशोदधि का तीर है । चलता रहूं इस मार्ग पर, मिट जायेगी भव पीर है ॥ ज्ञानी बनूं ध्यानी बनूं अरु , शुद्ध संयम तप धरूं । व्यवहार निश्चय से समन्वित, मुक्ति पथ पर आचरूं ॥ ६०॥ दोहा मुझको दो माँ आत्मबल, करूँ परम पुरुषार्थ । निज स्वभाव में लीन हो, पा जाऊं परमार्थ ॥ १ ॥ शुद्ध षटावश्यक विधि, पूजा भाव प्रधान । कीनी है शुभ भाव से, चाहँ निज कल्याण || २ ॥ आवश्यक षट् कर्म जो, शुद्ध कहे गुरू तार | इनका मैं पालन करूं, हो जाऊं भव पार || ३ ॥ ब्रह्मानन्द स्वरूप मय, वीतराग निज धर्म । धारण कर निज में रम, विनसें आठों कर्म ॥ ४ ॥ देव गुरू आगम धरम, ज्ञायक आतम राम । तीनों योग सम्हारि के, शत-शत करूं प्रणाम || ५ ॥ जय तारण तरण देव (परमात्मा) तारण तरण तारण तरण धर्म (स्वभाव) तारण तरण गुरू शुद्धात्मा तारण तरण बोलो तारण तरण जय तारण तरण अध्यात्म अध्यात्म का अर्थ है - अपने आत्म स्वरूप को जानना। अध्यात्म एक विज्ञान है, एक कला है, एक दर्शन है। अध्यात्म मानव के जीवन में जीने की कला के मूल रहस्य को उद्घाटित कर देता है।
SR No.009716
Book TitleGyanpushpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy