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________________ ६५ पूर्ण ज्ञान का प्रकट होना जान या ज्ञान अर्थ का अभिप्राय है। प्रश्न - पय अर्थ किसे कहते हैं और इसका क्या अभिप्राय है? उत्तर - सिद्ध परमात्मा के समान शुद्धात्मा की अनुभूति में लीनता को पय अर्थ कहते हैं। अभिप्राय-शुद्धात्म स्वरूप प्रयोजन भूत है, ऐसे शुद्ध स्वभाव में लीन होकर अविनाशी सिद्ध पद को प्रकट करना पय अर्थ का अभिप्राय है। प्रश्न - शब्दार्थ आदि पाँच अर्थ और उत्पन्न अर्थ आदि पंचार्थ में क्या अंतर है? उत्तर - शब्दार्थ, नयार्थ, मतार्थ, आगमार्थ और भावार्थ यह शास्त्रों के अर्थ करने की पद्धति है। इस पद्धति के द्वारा वस्तु स्वरूप का यथार्थ ज्ञान होता है। उत्पन्न अर्थ आदि पंचार्थ मोक्षमार्गी साधक की साधना में उत्तरोत्तर वृद्धि का बोध कराते हैं। उत्पन्न अर्थ आदि पंचार्थ के द्वारा रत्नत्रय की साधना-आराधना पूर्वक आत्मा से परमात्मा होने का मार्ग प्रशस्त होता है। शब्दार्थ आदि पाँच अर्थ और उत्पन्न आदि पंचार्थ में यही अंतर है। पाँच पदवी प्रश्न - पदवी किसे कहते हैं? उत्तर - जो मोक्षमार्ग में आत्मानुभूति की उत्तरोत्तर वृद्धिंगत अवस्थाओं का ज्ञान कराती है उसे पदवी कहते हैं। प्रश्न - पदवी के कितने भेद हैं ? उत्तर - पदवी के पाँच भेद हैं - १. उपाध्याय पदवी २. आचार्य पदवी ३. साधु पदवी ४. अरिहन्त पदवी ५. सिद्ध पदवी। प्रश्न - उपाध्याय पदवी किसे कहते हैं ? उत्तर - स्व - पर भेदज्ञान पूर्वक आत्मानुभव सहित साधक की सम्यक् श्रद्धान ज्ञानमय दशा को उपाध्याय पदवी कहते हैं। प्रश्न - आचार्य पदवी किसे कहते हैं? उत्तर - सम्यक्दृष्टि ज्ञानी की संयम युक्त साधक अवस्था को आचार्य पदवी कहते हैं। सम्यक्दृष्टि के अंतरंग में निर्मल भावों की वृद्धि होने से वह संयम तप का पालन करता है, ऐसे संयमी साधक को आचार्य पदवी वाला कहा गया है। प्रश्न - साधु पदवी किसे कहते हैं ? उत्तर - पापों के सर्वदेश त्याग रूप, निर्ग्रन्थ वीतरागी दशा को साधु पदवी कहते हैं। ऐसे साधु जो समस्त रागादि प्रपंचों से विरक्त परम वीतरागी अपने शुद्ध स्वभाव की साधना में लीन रहते हैं, वे साधु पदवी वाले कहे गये हैं। प्रश्न - अरिहन्त पदवी किसे कहते हैं? उत्तर - केवलज्ञान मयी परमात्म दशा को अरिहंत पदवी कहते हैं। अरिहंत पदवी वाला पूर्ण ज्ञान को उपलब्ध हो जाता है। यहाँ चार घातिया कर्म एवं अठारह दोषों का अभाव हो जाता है।
SR No.009716
Book TitleGyanpushpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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