SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रश्न अर्थ किसे कहते हैं ? उत्तर सारभूत प्रयोजनीय वस्तु को अर्थ कहते हैं। प्रश्न उत्तर प्रश्न उत्तर प्रश्न उत्तर प्रश्न अर्थ के कितने भेद हैं और वे कौन-कौन से हैं? उत्तर प्रश्न उत्तर प्रश्न उत्तर - प्रश्न उत्तर - - - - - - - - - - - - I│ - पाठ २ पंचार्थ और पाँच पदवी - - ६४ अर्थ के पाँच भेद हैं - उत्पन्न अर्थ, हितकार अर्थ, सहकार अर्थ, जान अर्थ और पय अर्थ । ॐ ह्रीं श्रीं क्या हैं ? ॐ ह्रीं श्रीं सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र का बोध कराने वाले बीज मंत्र हैं । ॐ ह्रीं श्रीं किसके वाचक मंत्र हैं ? ॐ - व्यवहार से पंच परमेष्ठी का और निश्चय से शुद्धात्म स्वरूप का वाचक मंत्र है । ह्रीं - व्यवहार से चौबीस तीर्थंकरों का और निश्चय से केवलज्ञान स्वरूप आत्मा का वाचक मंत्र है। श्री मोक्ष लक्ष्मी का वाचक मंत्र है। - उत्पन्न अर्थ किसे कहते हैं, इसकी उत्पत्ति का बीजाक्षर मंत्र कौन सा है ? प्रयोजन भूत शुद्धात्म स्वरूप की अनुभूति को उत्पन्न अर्थ कहते हैं। उत्पन्न अर्थ की उत्पत्ति का बीजाक्षर मंत्र 'ॐ' है । अभिप्राय - ॐकारमयी शुद्धात्म स्वरूप के आश्रय से निज स्वभाव की अनुभूति होती है यही उत्पन्न अर्थ है । आगम में इसको सम्यग्दर्शन कहा गया है। हितकार अर्थ किसे कहते हैं, इसकी उत्पत्ति का विधान और बीजाक्षर मंत्र कौन सा है ? स्वानुभूति पूर्वक स्व-पर के यथार्थ बोध रूप प्रयोजनीय ज्ञान का होना हितकार अर्थ कहलाता है। हितकार अर्थ की उत्पत्ति का बीजाक्षर मंत्र 'ह्रीं' है । - । अभिप्राय केवलज्ञानमयी आत्मा की अनुभूति पूर्वक स्व पर का यथार्थ ज्ञान होता है। इस हितकारी प्रयोजन भूत ज्ञान का प्रकट होना हितकार अर्थ है। आगम में इसको सम्यग्ज्ञान कहा है। - सहकार अर्थ किसे कहते हैं, इसकी उत्पत्ति का विधान और बीजाक्षर मंत्र कौन सा है ? प्रयोजन भूत स्वभाव के साथ रहने अर्थात् आत्म स्वभाव में लीनता को सहकार अर्थ कहते हैं। सहकार अर्थ की उत्पत्ति का बीजाक्षर मंत्र 'श्रीं' है जो मोक्ष लक्ष्मी का वाचक है । अभिप्राय मोक्ष लक्ष्मी स्वरूप अपने शुद्ध स्वभाव में स्थिर होने को सहकार अर्थ कहते हैं। इसको आगम में सम्यक्चारित्र कहा गया है। जान अर्थ किसे कहते हैं और इसका अभिप्राय क्या है ? केवलज्ञान की प्रकटता को जान या ज्ञान अर्थ कहते हैं । अभिप्राय - ज्ञान स्वभाव प्रयोजनीय है, इस प्रकार के लक्ष्य सहित स्वभाव में स्थित होकर
SR No.009716
Book TitleGyanpushpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy