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________________ प्रश्न उत्तर प्रश्न उत्तर प्रश्न उत्तर प्रश्न उत्तर प्रश्न उत्तर प्रश्न उत्तर प्रश्न उत्तर प्रश्न उत्तर प्रश्न उत्तर प्रश्न उत्तर II II - - - - - - - - I II - - - - - - - हो जाता है और सच्चा सुख प्राप्त होता है। इस प्रकार सम्यग्दर्शन महान रत्न है । सम्यक् दृष्टि जीव कौन-कौन सी पर्यायों में जन्म नहीं लेता ? सम्यकदृष्टि जीव एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय (डीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय) असैनी पंचेन्द्रिय में, तिर्यंच गति, नरक गति, नपुंसक, स्त्री पर्याय, भवनवासी, व्यंतर और ज्योतिषी देव-देवियों की पर्याय में जन्म नहीं लेता। सम्यग्दर्शन होने के पूर्व नरक गति बांध ली हो तो प्रथम नरक में जाता है। शेष छह पृथ्वियों में नहीं जाता । सम्यदृष्टि जीव अल्पायु और विकलांग नहीं होता तथा नीच घरानों में और दरिद्र कुल में भी जन्म नहीं लेता । सम्यक दृष्टि जीव कहाँ कहाँ उत्पन्न होता है ? सम्यकदृष्टि जीव उत्कृष्ट ऋद्धि धारी देव, इन्द्र, बलभद्र, चक्रवर्ती आदि महापुरुष ही होते हैं । वे तीर्थंकर पद भी प्राप्त करते हैं तथा मोक्ष लक्ष्मी के स्वामी होते हैं। १३ · सम्यग्ज्ञान किसे कहते हैं और सम्यग्ज्ञान के कितने भेद हैं ? संशय, विभ्रम (विपर्यय), विमोह (अनध्यवसाय) रहित स्व-पर के यथार्थ निर्णय को सम्यग्ज्ञान कहते हैं । सम्यग्ज्ञान के कितने भेद हैं ? सम्यग्ज्ञान के ५ भेद हैं - १. मतिज्ञान २. श्रुतज्ञान ३. अवधिज्ञान ४. मन:पर्ययज्ञान ५. केवलज्ञान । मतिज्ञान किसे कहते हैं ? इन्द्रिय और मन की सहायता से जो ज्ञान होता है उसे मतिज्ञान कहते हैं। - श्रुतज्ञान किसे कहते हैं ? मतिज्ञान से जाने हुए पदार्थ के संबध से किसी दूसरे पदार्थ के ज्ञान को श्रुतज्ञान कहते हैं । जैसे घट शब्द सुनने के बाद कम्बु - ग्रीवा आदि आकार रूप घट का ज्ञान होना अथवा मतिज्ञान के द्वारा जाने हुए पदार्थ को विशेष रूप से जानना श्रुतज्ञान कहलाता है। अवधिज्ञान किसे कहते हैं ? जो ज्ञान, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की मर्यादा पूर्वक रूपी पदार्थों को जानता है उसे अवधिज्ञान कहते हैं। मन:पर्ययज्ञान किसे कहते हैं ? जो ज्ञान दूसरे के मन में स्थित रूपी पदार्थों को जानता है उसे मन:पर्ययज्ञान कहते हैं। केवलज्ञान किसे कहते हैं ? जो ज्ञान समस्त द्रव्यों को और उनकी त्रिकालवर्ती पर्यायों को एक समय में एक साथ जानता है उसे केवलज्ञान कहते हैं। गुरूदेव तारण स्वामी जी ने सम्यग्ज्ञान के बारे में क्या कहा है ? आत्मा ज्ञानमयी है, ज्ञान ही सबको जानता है, इसलिए ज्ञान आत्मा का असाधारण गुण है । ज्ञान के बल से ही आत्मा परमात्मा होता है इसलिए सम्यग्ज्ञान तीन लोक में सारभूत है।
SR No.009716
Book TitleGyanpushpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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