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सम्यग्ज्ञान के उदय होते ही अज्ञान अंधकार नष्ट हो जाता है। इस प्रकार सम्यग्ज्ञान के बारे में
गुरूदेव तारण स्वामी जी ने विशद् वर्णन किया है। प्रश्न - सम्यग्ज्ञान को रत्न क्यों कहा जाता है? उत्तर - अज्ञानी जीव करोड़ों जन्मों में भी तप करके उतने कर्मों की निर्जरा नहीं कर पाता जितनी
निर्जरा ज्ञानी जीव सम्यग्ज्ञान सहित त्रियोग की एकता पूर्वक सहज में कर देता है। ज्ञान ही
परम पद में स्थित होने का मार्ग प्रशस्त करता है, इस प्रकार ज्ञान महान रत्न है। प्रश्न - श्री ज्ञान समुच्चय सार जी ग्रन्थ के रत्नत्रय संबंधी सूत्रों का उल्लेख कीजिये? उत्तर - १. 'दंसन धरनं च मुक्ति गमनं च' सम्यग्दर्शन को धारण करने से मुक्ति गमन होता है।
(२५६/४) २.'न्यानं तिलोय सारं नायव्वो गुरू पसाएन' सम्यग्ज्ञान ही तीन लोक में सारभूत है ऐसा श्री गुरू के प्रसाद से जानो। (२६१/३-४) ३. न्यानं दंसन सम्म, समभावना हवदि चारित्तं सम्यग्दर्शन,सम्यग्ज्ञान पूर्वक जो समभावना
(रागद्वेष रहित भावना) होती है उसे सम्यक्चारित्र कहते हैं। (२६२/१२) प्रश्न - रत्नत्रय को धारण करने का क्या फल है? उत्तर - सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र की एकता मोक्ष का मार्ग है। यही मुक्ति की प्राप्ति का उपाय है।
इसलिए रत्नत्रय को धारण करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। (सम्यक्चारित्र से संबंधित प्रश्न अध्याय ३ में श्री कमलबत्तीसी ग्रंथ की गाथा २४ में देखें।)
अभ्यास के प्रश्न प्रश्न १- सही विकल्प चुनकर लिखिए।
(क) मोक्षमार्ग का मूल है - (अ) रत्नत्रय (ब) सम्यग्दर्शन (स) सम्यग्ज्ञान (द) सम्यक्चारित्र (ख) सम्यग्दर्शन के लिए आवश्यक है
(अ) भेदज्ञान (ब) श्रद्धा (स) तत्वों की जानकारी (द) जैन धर्म (ग) सम्यग्दृष्टि ने सम्यक्दृष्टि होने के पूर्व नरक गति बांध ली हो तो कहाँ जाता है?
(अ) सातवें नरक (ब) सोलहवें स्वर्ग (स) मोक्ष (द) प्रथम नरक प्रश्न २-रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।
(क) सम्यक्दृष्टि जीव अल्पायु और.............नहीं होता। (ख) मुनिधर्म के आचार का प्रतिपादन करने वाले आचार सूत्र को सुनकर जो श्रद्धान होता है
उसे.............कहते हैं। (ग) अज्ञानी जीव करोड़ों जन्मों में भी तप करके कर्मों की............नहीं कर पाता है। (घ) दंसन धरनं च.............गमनं च।