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________________ द्रव्यानुयोग की अपेक्षा१. जीव-अजीवादि सात तत्त्वों के विकल्प से रहित शुद्ध आत्मा के श्रद्धान को निश्चय सम्यग्दर्शन कहते हैं। २. सात तत्त्वों के विकल्प सहित शुद्ध आत्मा के यथार्थ श्रद्धान को व्यवहार सम्यग्दर्शन कहते हैं। अध्यात्म की अपेक्षा१. आत्मा की विशुद्धि मात्र को वीतराग सम्यग्दर्शन कहते हैं। २. आत्म श्रद्धान सहित प्रशम, संवेग, आस्तिक्य, अनुकम्पा इन चार गुणों की अभिव्यक्ति को सराग सम्यग्दर्शन कहते हैं। ज्ञान मार्ग की साधना अपेक्षा१. निर्विकल्प आत्मानुभूति को मूल सम्यक्त्व कहते हैं। २. जिनेन्द्र भगवान की आज्ञा की प्रधानता से जो पदार्थों का श्रद्धान होता है उसे आज्ञा सम्यक्त्व कहते हैं। ३. वेदक,४. उपशम, ५. क्षायिक - इन तीनों का स्वरूप करणानुयोग के अनुसार जानना। ६. शुद्ध आत्म स्वरूप में रमणता रूप ध्रुव अटल श्रद्धान को शुद्ध सम्यक्त्व कहते हैं। ज्ञान प्रधान निमित्त आदि की अपेक्षा१. आज्ञा सम्यक्त्व - ऊपर लिखे हुए ज्ञान मार्ग की साधना अपेक्षा में क्र.२ के अनुसार जानें। २. निर्ग्रन्थ मार्ग के अवलोकन से जो सम्यग्दर्शन होता है उसे मार्ग सम्यक्त्व कहते हैं। ३. आगम के ज्ञाता पुरुषों के उपदेश से उत्पन्न सम्यग्दर्शन को उपदेश सम्यक्त्व कहते हैं। ४. मुनिधर्म के आचार का प्रतिपादन करने वाले आचार सूत्र को सुनकर जो श्रद्धान होता है उसे सूत्र सम्यक्त्व कहते हैं। ५. गणित ज्ञान के कारण बीजों के समूह से जो सम्यक्त्व होता है उसे बीज सम्यक्त्व कहते हैं। ६. पदार्थों के संक्षिप्त विवेचन को सुनकर जो तत्त्वार्थ श्रद्धान होता है उसे संक्षेप सम्यक्त्व कहते ७. पदार्थों के विस्तार सहित विवेचन को सुनकर जो तत्त्वार्थ श्रद्धान होता है उसे विस्तार सम्यक्त्व कहते हैं। ८. जिन वचनों के अर्थ को सुनकर जो श्रद्धान होता है उसे अर्थ सम्यक्त्व कहते हैं। ६. श्रुतकेवली के तत्त्व श्रद्धान को अवगाढ़ सम्यक्त्व कहते हैं। १०.केवली भगवान के तत्त्व श्रद्धान को परमावगाढ़ सम्यक्त्व कहते हैं। प्रश्न - सम्यग्दर्शन की क्या विशेषता है? उत्तर - सम्यग्दर्शन मोक्ष महल की प्रथम सीढ़ी है। इसके बिना ज्ञान और चारित्र सम्यक् नहीं होते। सम्यग्दर्शन धर्म रूपी वृक्ष की जड़ है। जिस प्रकार नींव के बिना घर नहीं होता उसी प्रकार सम्यग्दर्शन के बिना धर्म नहीं होता। सम्यग्दर्शन के होते ही अनादिकालीन दुःखों का अभाव
SR No.009716
Book TitleGyanpushpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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