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________________ २. करणानुयोग की अपेक्षा तीन भेद हैं - १. औपशमिक सम्यग्दर्शन, २. क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन, ३. क्षायिक सम्यग्दर्शन। ३. चरणानुयोग की अपेक्षा दो भेद हैं - १. निश्चय सम्यग्दर्शन, २. व्यवहार सम्यग्दर्शन। ४. द्रव्यानुयोग की अपेक्षा दो भेद हैं १. निश्चय सम्यग्दर्शन, २. व्यवहार सम्यग्दर्शन । ५. अध्यात्म की अपेक्षा दो भेद हैं - १. वीतराग सम्यग्दर्शन, २. सराग सम्यग्दर्शन । ६. ज्ञान प्रधान निमित्त आदि की अपेक्षा दस भेद हैं १. आज्ञा, २. मार्ग, ३. उपदेश, ४. सूत्र, ५. बीज, ६. संक्षेप, ७. विस्तार, ८. अर्थ, ६. अवगाढ़, १०. परमावगाढ़। ७. ज्ञान मार्ग की साधना अपेक्षा छह भेद हैं - १. मूल, २. आज्ञा, ३. वेदक, ४. उपशम, ५. क्षायिक, ६. शुद्ध। प्रश्न - आगम में सम्यग्दर्शन के भेद करके कथन क्यों किया गया है? उत्तर - सम्यग्दर्शन में आत्मानुभूति तो एक रूप रहती है किन्तु सम्यग्दर्शन की प्राप्ति में बाह्य कारणों की भिन्नता होने से भेद करके कथन किया गया है। प्रश्न - सम्यग्दर्शन के भेद-प्रभेदों का क्या स्वरूप है? उत्तर - उत्पत्ति की अपेक्षा १. जो पूर्व संस्कार की प्रबलता से परोपदेश के बिना हो जाता है वह निसर्गज सम्यग्दर्शन कहलाता है। २.जो पर के उपदेश पूर्वक होता है उसे अधिगमज सम्यग्दर्शन कहते हैं। करणानुयोग की अपेक्षा१. अनन्तानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ, मिथ्यात्व, सम्यमिथ्यात्व, सम्यक् प्रकृति मिथ्यात्व इन सात प्रकृतियों के उपशम से जो तत्त्वों का यथार्थ श्रद्धान होता है उसे उपशम सम्यग्दर्शन कहते हैं। २. सात प्रकृतियों के क्षयोपशम से जो तत्त्वार्थ श्रद्धान होता है उसे क्षयोपशम सम्यग्दर्शन कहते हैं। ३. सात प्रकृतियों के क्षय होने पर तत्वार्थका जो निर्मल श्रद्धान होता है उसे क्षायिक सम्यग्दर्शन कहते हैं। चरणानुयोग की अपेक्षा - १. सच्चे देव, गुरू, शास्त्र की यथार्थ श्रद्धा करने को निश्चय सम्यग्दर्शन कहते हैं। २. सम्यक्दृष्टि की २५ दोषों से रहित प्रवृत्ति को व्यवहार सम्यग्दर्शन कहते हैं।
SR No.009716
Book TitleGyanpushpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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