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प्रश्न ४ - दीर्घ उत्तरीय प्रश्न -
(क) अवसर्पिणी एवं उत्सर्पिणी काल के प्रत्येक काल का समय बताइये। उत्तर - अवसर्पिणी काल - १. सुषमा-सुषमा काल-चार कोड़ाकोड़ी सागर। २. सुषमा काल-तीन
कोड़ाकोड़ी सागर। ३. सुषमा-दुःषमा काल-दो कोड़ाकोड़ी सागर। ४. दुषमा-सुषमा काल४२००० वर्ष कम एक कोड़ाकोड़ी सागर। ५. दुःषमा काल-२१००० वर्ष । ६. दुःषमा दुःषमा काल-२१००० वर्ष। उत्सर्पिणी काल- १. दुःषमा दुःषमा काल-२१००० वर्ष । २. दुःषमा दुःषमा काल-२१००० वर्ष । ३. दुषमा सुषमा काल-४२००० वर्ष कम एक कोड़ाकोड़ी सागर । ४. सुषमा दुःषमा काल-दो कोड़ाकोड़ी सागर । ५. सुषमा काल-तीन कोड़ाकोड़ी सागर । ६. सुषमा- सुषमा
काल - चार कोड़ाकोड़ी सागर। प्रश्न ५-षट्काल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिएउत्तर - (प्रवेशार्थी स्वयं लिखें)
पाठ-३
रत्नत्रय प्रश्न - रत्नत्रय किसे कहते हैं ? उत्तर - सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र को रत्नत्रय कहते हैं, रत्नत्रय की एकता ही मोक्ष का
मार्ग है। प्रश्न - सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र का विषय क्या है? उत्तर - सम्यग्दर्शन का विषय - एकांत (निरपेक्ष ध्रुव स्वभाव)
सम्यग्ज्ञान का विषय - अनेकांत (द्रव्य गुण पर्याय) सम्यक्चारित्र का विषय - कर्म सापेक्ष (रागादि भाव से रहित उपयोग का निज
में रहना) प्रश्न - मोक्षमार्ग में सबसे पहले आवश्यक क्या है? उत्तर - मोक्षमार्ग का मूल सम्यग्दर्शन है सबसे पहले इसे प्राप्त करना आवश्यक है।
- सम्यग्दर्शन की प्राप्ति का उपाय क्या है? उत्तर - सम्यग्दर्शन की प्राप्ति का उपाय -
१. आगम का सेवन, २. पर अपर गुरू का उपदेश, ३.युक्ति का अवलंबन, ४. स्वसंवेदन। प्रश्न - सम्यग्दर्शन किसे कहते हैं? उत्तर - जीवादितत्त्वों का यथार्थ श्रद्धान अथवा स्वानुभूति प्रमाण स्व-पर भेद विज्ञान को सम्यग्दर्शन
कहते हैं। प्रश्न - सम्यग्दर्शन के कितने भेद हैं? उत्तर - १. उत्पत्ति की अपेक्षा दो भेद हैं -
१. निसर्गज सम्यग्दर्शन, २. अधिगमज सम्यग्दर्शन ।