SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रश्न उत्तर प्रश्न उत्तर - - २. दुःषमा काल इस काल में भी क्रमशः आयु ऊँचाई, बुद्धि बढ़ते रहते हैं। इस काल में - , " मनुष्य और तिर्यंचों का आहार बीस हजार वर्ष पर्यंत पहले के समान ही रहता है। इस काल में एक हजार वर्ष शेष रहने पर क्रमशः चौदह कुलकर होते हैं जो कुलानुरूप आचरण और अग्नि से भोजन पकाना आदि सिखाते हैं। ३. दुःषमा सुषमा काल इस काल में आयु ऊँचाई, बल आदि में क्रमशः वृद्धि होती है। अंतिम कुलकर से प्रथम तीर्थंकर महापद्म (राजा श्रेणिक का जीव) होंगे। बाद में २३ तीर्थंकर और होंगे। अंतिम तीर्थंकर अनंत वीर्य होंगे। जिनकी आयु एक पूर्व कोटि और ऊँचाई ५०० धनुष होगी। - ४. सुषमा दुःषमा काल - इस काल में जघन्य भोगभूमि होती है। ५. सुषमा काल - इस काल में मध्यम भोगभूमि होती है । ६. सुषमा सुषमा काल इस काल में उत्तम भोगभूमि होती है। काल परिवर्तन कहाँ होते हैं ? पाँचों भरत क्षेत्र, पाँचों ऐरावत क्षेत्र के मध्यवर्ती आर्य खण्ड में ही यह काल परिवर्तन होते हैं । एक कल्पकाल पूरा कब होता है। उत्सर्पिणी काल का १० कोडाकोडी सागर समय पूरा होने पर तथा अवसर्पिणी काल का १० कोड़ाकोडी सागर समय पूरा होने पर एक कल्पकाल होता है । अभ्यास के प्रश्न - प्रश्न १ - सही जोड़ी बनाइये । १. कल्पकाल दुःषमा दुःषमा से सुषमा सुषमा (२) २. उत्सर्पिणी - सुषमा सुषमा से दुःषमा दुःषमा (३) ३. अवसर्पिणी - उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी का योग (१) ४. मध्यम भोग भूमि - दुःषमा सुषमा (५) ५. कर्म भूमि सुषमा (४) - - प्रश्न २ सत्य / असत्य कथन चुनिये । - (क) अवसर्पिणी का पाँचवां दुःषमा काल २१००० वर्ष का होता है। (ख) सुषमा दुःषमा काल (उत्सर्पिणी) में अंतिम तीर्थंकर से प्रथम तीर्थंकर की उत्पत्ति होती है । (ग) ८४ लाख गुणित ८४ लाख गुणित १ करोड़ वर्ष १ पूर्व कोटि वर्ष । (घ) उत्सर्पिणी के प्रथम काल में १४ दिनों तक जल, (ङ) सभी क्षेत्रों में षट्काल परिवर्तन होते हैं। प्रश्न ३ - लघु उत्तरीय प्रश्न (३० शब्दों में) दूध, घी, अमृत रस की वर्षा होती है। (क) षट्काल चक्र परिवर्तन का चार्ट बनाइये। (उत्तर - रंगीन चित्र देखें ।)
SR No.009716
Book TitleGyanpushpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy