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प्रश्न ३२७- अनन्तानबंधी कषायोदयजनित अविरति की प्रधानता से कितनी और किन-किन
प्रकृतियों का बंध होता है? उत्तर अनन्तानुबंधी कषायोदयजनित अविरति की प्रधानता से पच्चीस प्रकृतियों का बंध
होता है - अनन्तानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ, स्त्यानगृद्धि, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय, अप्रशस्त विहायोगति, स्त्रीवेद, नीचगोत्र, तिर्यंचगति, तिर्यंच गत्यानुपूर्वी, तिर्यंचायु, उद्योत, चार संस्थान (न्यग्रोध परिमण्डल, स्वाति, कुब्जक और
वामन), चार संहनन (वजनाराच, नाराच, अर्धनाराच और कीलित)। प्रश्न ३२८- अप्रत्याख्यानावरण कषायोदयजनित अविरति की प्रधानता से कितनी और
किन-किन प्रकृतियों का बंध होता है? उत्तर
अप्रत्याख्यानावरण कषायोदयजनित अविरति की प्रधानता से दश प्रकृतियों का बंध होता है - अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी,
मनुष्यायु, औदारिक शरीर, औदारिक आङ्गोपाङ्ग और वजवृषभनाराच संहनन। प्रश्न ३२९- प्रत्याख्यानावरण कषाय उदय जनित अविरति की प्रधानता से कितनी और
किन-किन प्रकृतियों का बंध होता है? उत्तर - प्रत्याख्यानावरण कषायोदयजनित अविरति की प्रधानता से चार प्रकृतियों का बंध होता
है - प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ । प्रश्न ३३०- प्रमाद की प्रधानता से कितनी और किन-किन प्रकृतियों का बंध होता है? उत्तर प्रमाद की प्रधानता से छह प्रकृतियों का बंध होता है - अस्थिर, अशुभ, असाता वेदनीय,
अयशःकीर्ति, अरति और शोक। प्रश्न ३३१- कषाय की प्रधानता से कितनी और किन-किन प्रकृतियों का बंध होता है? उत्तर - कषाय की प्रधानता से अट्ठावन प्रकृतियों का बंध होता है - देवायु, निद्रा, प्रचला,
तीर्थंकर, निर्माण, प्रशस्त विहायोगति, पञ्चेन्द्रिय जाति, तैजस शरीर, कार्माण शरीर, आहारक शरीर, आहारक आङ्गोपाङ्ग, समचतुरस्र संस्थान, वैक्रियक शरीर, वैक्रियक आङ्गोपाङ्ग, देवगति, देव गत्यानुपूर्वी, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छवास, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, हास्य, रति, जुगुप्सा, भय, पुरुषवेद, संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ, मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, मनःपर्यय ज्ञानावरण, केवलज्ञानावरण, चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण, केवलदर्शनावरण, दानान्तराय,
लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय, वीर्यान्तराय, यशस्कीर्ति और उच्च गोत्र । प्रश्न ३३२- योग की प्रधानता से किस प्रकृति का बंध होता है? उत्तर - योग की प्रधानता से एक साता वेदनीय प्रकृति का बंध होता है। प्रश्न ३३३ - कर्म प्रकृतियों की संख्या १४८ है, परन्तु उनमें केवल १२० प्रकृतियों के ही कारण
बताये गये हैं, सो २८ प्रकृतियों का क्या होता है? उत्तर बन्ध योग्य १२० प्रकृतियों में बीस स्पर्शादि की जगह मुख्य चार का ग्रहण किया गया है,
इस कारण १६ तो ये प्रकृतियाँ कम हो जाती हैं। पाँच शरीरों के पाँच बन्धन तथा पाँच
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