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प्रश्न ३२१- प्रमाद किसे कहते हैं? उत्तर - संज्वलनकषाय और नोकषाय के तीव्र उदय से निरतिचार चारित्र पालने में अनुत्साह तथा
स्वरूप की असावधानी को प्रमाद कहते हैं। (प्रमाद की इस परिभाषा में छटवें गुण स्थान के प्रमाद को ही प्रमाद कहा गया है, जबकि पहले गुणस्थान से छटवें गुणस्थान तक प्रमाद की सत्ता होती है लेकिन यहाँ पहले से लेकर पाँचवें गुणस्थान तक के प्रमाद को उन-उन
गुणस्थानों के योग्य मिथ्यात्व और अविरति भावों में अंतर्भाव किया गया है।) प्रश्न ३२२- प्रमाद के कितने भेद हैं ? उत्तर - प्रमाद के पन्द्रह भेद हैं - चार विकथा (स्त्रीकथा, राजकथा, चोर कथा, भोजनकथा),
चार कषाय (संज्वलन कषाय के तीव्रोदयजनित क्रोध, मान, माया, लोभ), पाँच इन्द्रियों के विषय, एक निद्रा और एक स्नेह ।
प्रमाद के भेद
चार विकथा
चारकषाय
पंचेंद्रिय विषय
मंत्री राज चोर भोजन को मान माया लोभ म्पर्शन रसना या प्रश्न ३२३- कषाय किसे कहते हैं? उत्तर - संज्वलनकषाय और नोकषाय के मंद उदय में प्रादुर्भूत आत्मा के परिणाम विशेष को कषाय
कहते हैं। (कषाय की इस परिभाषा में मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद के बाद जो कषाय बचती है उसे ही कषाय कहा गया है। जबकि मिथ्यात्व, अविरति और प्रमाद के साथ भी कषाय होती है, परन्तु यहाँ उनके साथ रहने वाली कषाय को
मिथ्यात्व, अविरति और प्रमाद के अंतर्गत में शामिल किया गया है।) प्रश्न ३२४- योग किसे कहते हैं? उत्तर - मनोवर्गणा वचनवर्गणा और कायवर्गणा (आहार वर्गणा तथा कार्माण वर्गणा) के अवलंबन
से कर्म, नोकर्म को ग्रहण करने की शक्ति विशेष को योग कहते हैं। प्रश्न ३२५- योग के कितने भेद है? उत्तर - योग के पन्द्रह भेद हैं - चार मनोयोग (सत्य मनोयोग, असत्य मनोयोग, उभय मनोयोग,
अनुभय मनोयोग), चार वचनयोग (सत्य वचनयोग, असत्य वचनयोग, उभय वचनयोग, अनुभय वचनयोग) और सात काय योग (औदारिक, औदारिक मिश्र, वैक्रियक, वैक्रियक
मिश्र, आहारक, आहारक मिश्र और कार्माण काययोग)। प्रश्न ३२६- मिथ्यात्व की प्रधानता से कितनी और किन-किन प्रकृतियों का बंध होता है? उत्तर मिथ्यात्व की प्रधानता से सोलह प्रकृतियों का बंध होता है - मिथ्यात्व, हुण्डक संस्थान,
नपुंसकवेद, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, नरकायु, असंप्राप्तासृपाटिका संहनन, चार जाति (एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय), स्थावर, आतप, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण।