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प्रश्न १४४- ज्ञानावरण कर्म के कितने भेद हैं? उत्तर - ज्ञानावरणकर्म के पाँच भेद हैं - मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण,
मनःपर्ययज्ञानावरण और केवल ज्ञानावरण कर्म । प्रश्न १४५- दर्शनावरण कर्म किसे कहते हैं? उत्तर - जो कर्म आत्मा के दर्शनगुण को घातता है उसे दर्शनावरण कहते हैं।
(तत्त्वज्ञान आदि के सम्बन्ध में प्रदोष, निव, मात्सर्य, अन्तराय, आसादन, उपघात आदि भाव ज्ञानावरण और दर्शनावरण के आस्रव हैं अर्थात् ज्ञानावरण और दर्शनावरण कर्म का बन्ध होता है।)( तत्वार्थसूत्र ६/१०)
दर्शनावरण
४आवरण
च
अचम
अवधि
सिद्धा1.बकावट को दूर करने के लिए २.गमन करते हुए रुकना, बैठना, गिरवा
पचला .धोकाश्रम, मद से उत्प्पा २.नेत्रमुख उवाडे हुए सोना,अयना
निद्रा-विक्र 1.बीवपरमीद २. नेत्रों को न उबाइपाना
प्रचला-प्रचला .स-२,बैठे-२ चलते-२ पुनः-३ .मुब से लार आना, हाथ पैर चला
प्रश्न १४६- दर्शनावरण कर्म के कितने भेद हैं? उत्तर - दर्शनावरण कर्म के नौ भेद हैं - चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधि दर्शनावरण,
केवलदर्शनावरण, निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला और स्त्यानगृद्धि कर्म । प्रश्न १४७ - वेदनीय कर्म किसे कहते हैं? उत्तर
- जिस कर्म के फल में जीव को बाह्य सुख - दुःख की वेदना होती है अर्थात जो कर्म निमित्त
रूप से आत्मा के अव्याबाधगुण को घातता है उसे वेदनीय कर्म कहते हैं। प्रश्न १४८- वेदनीय कर्म के कितने भेद हैं? उत्तर - वेदनीय कर्म के दो भेद हैं - सातावेदनीय और असातावेदनीय कर्म।
(संसारी जीवों और व्रतियों के प्रति क्रमशः अनुकम्पा, दान और सरागसंयम आदि रूप योग, सहनशीलता, शौच आदि भावों से सातावेदनीय कर्म का बन्ध होता है।)
(- तत्वार्थसूत्र ६/१) (दुःख, शोक, ताप, चीखना, विलाप करना आदि भावों से असातावेदनीय कर्म का बन्ध होता है।)
(- तत्वार्थसूत्र ६/११) प्रश्न १४९- मोहनीय कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर - जो कर्म आत्मा के सम्यक्त्व और चारित्रगुण को घातता है उसे मोहनीय कर्म कहते हैं। प्रश्न १५०- मोहनीय कर्म के कितने भेद हैं? उत्तर - मोहनीय कर्म के दो भेद हैं - दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीय कर्म ।