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________________ प्रश्न १३५ - जीव के कितने भेद हैं ? उत्तर जीव के दो भेद हैं- संसारी और मुक्त । प्रश्न १३६- संसारी जीव किसे कहते हैं ? उत्तर कर्मसहित जीव को संसारी जीव कहते हैं । - उत्तर प्रश्न १३८ उत्तर - प्रश्न १३७ - मुक्त जीव किसे कहते हैं ? - - - - द्वितीय अध्याय कर्म का स्वरूप (दोहा) कर्मस्वरूप को जानकर, अकर्म स्वभाव पहिचान | अकर्तृत्व को भोगकर, भये सिद्ध भगवान || प्रश्न १३९- कर्म बन्ध के कितने भेद हैं ? - । उत्तर कर्मबन्ध के चार भेद हैं प्रकृतिबन्ध, प्रदेशबन्ध स्थितिबन्ध और अनुभागबन्ध । प्रश्न १४० - चार प्रकार के कर्म बन्ध के कारण क्या हैं ? उत्तर योग से प्रकृति और प्रदेशबन्ध होते हैं तथा कषाय से स्थिति और अनुभाग बन्ध होते हैं। ( मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग ये पाँच कर्म बन्ध के कारण हैं ।) ( तत्वार्थसूत्र ८/१) - - कर्मरहित जीव को मुक्त जीव कहते हैं। कर्म किसे कहते हैं ? प्रश्न १४३ उत्तर प्रश्न १४१- प्रकृतिबन्ध किसे कहते हैं ? उत्तर - जीव के राग-द्वेषादि परिणामों के निमित्त से जो कार्मण वर्गणारूप पुद्गल स्कन्ध जीव के साथ बन्ध को प्राप्त होते हैं उन्हें कर्म कहते हैं। (कषायसहित जीव, कर्म के योग्य पुद्गलों को ग्रहण करता है, वह कर्म बन्ध कहलाता है।) ( तत्वार्थसूत्र ८ / २) प्रश्न १४२ प्रकृतिबन्ध या कर्म के कितने भेद हैं ? उत्तर २.१ प्रकृतिबन्ध १६८ मोहादि जनक तथा ज्ञानादि घातक उस उस स्वभाव वाले कार्मण पुद्गल स्कन्धों का आत्मा से सम्बन्ध होना प्रकृतिबन्ध कहलाता है। प्रकृतिबन्ध या कर्म के आठ भेद हैं - ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तरायकर्म कर्म और प्रकृति एकार्थवाची हैं । ज्ञानावरण कर्म किसे कहते हैं ? कर्म आत्मा के ज्ञानगुण को घातता है उसे ज्ञानावरण कर्म कहते हैं ।
SR No.009716
Book TitleGyanpushpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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