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________________ १७० प्रश्न १५१- दर्शनमोहनीय कर्म किसे कहते हैं? उत्तर - जो कर्म आत्मा के सम्यक्त्व गुण को घातता है, उसे दर्शनमोहनीय कर्म कहते हैं। (केवली ,श्रुत ,संघ , देव आदि का अवर्णवाद करने से दर्शनमोहनीय कर्म का बन्ध होता है।) (- तत्वार्थसूत्र ६/१३) प्रश्न १५२- दर्शनमोहनीय कर्म के कितने भेद हैं? उत्तर - दर्शनमोहनीय कर्म के तीन भेद है- मिथ्यात्व, सम्यमिथ्यात्व और सम्यक्प्रकृति कर्म । प्रश्न १५३- मिथ्यात्व कर्म किसे कहते हैं? उत्तर - जिस कर्म के उदय से जीव को अतत्त्वश्रद्धान होता है उसे मिथ्यात्व कर्म कहते हैं। प्रश्न १५४ - सम्यमिथ्यात्व कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर - जिस कर्म के उदय से जीव को मिश्रित परिणाम होता है अर्थात जो परिणाम न तो सम्यक्त्वरूप होता है और न मिथ्यात्व रूप होता है, उसे सम्यमिथ्यात्व कर्म कहते हैं । प्रश्न १५५- सम्यक्प्रकृति मिथ्यात्व किसे कहते हैं? उत्तर - जिस कर्म के उदय से सम्यक्त्वगुण का समूल घात तो नहीं होता, परन्तु चल, मल, अगाढ़ आदि दोष उत्पन्न होते हैं उसे सम्यक्प्रकृति मिथ्यात्व कहते हैं। प्रश्न १५६- चारित्रमोहनीय कर्म किसे कहते हैं? उत्तर - जो कर्म आत्मा के चारित्रगुण को घातता है उसे चारित्रमोहनीय कर्म कहते हैं। (कषाय के उदय से तीव्र परिणाम होने पर चारित्रमोहनीय कर्म का बन्ध होता है।) (-तत्वार्थसूत्र ६/१४) प्रश्न १५७ - चारित्रमोहनीय कर्म के कितने भेद हैं? उत्तर - चारित्रमोहनीय कर्म के दो भेद हैं - कषायवेदनीय और नोकषायवेदनीय कर्म । (यहाँ वेदनीय शब्द से यह नहीं समझना चाहिए कि यह वेदनीय कर्म का भेद है, बल्कि यहाँ चारित्रमोहनीय कर्म के ही दो भेदों के नाम कषायवेदनीय और नोकषाय वेदनीय हैं अर्थात् जिस कर्म के उदय से जीव कषाय का वेदन करता है वह कषायवेदनीय है तथा जिस कर्म के उदय से जीव नोकषाय का वेदन करता है वह नोकषायवेदनीय है। ये चारित्रमोहनीय कर्म के भेद हैं।) (-धवला १३/५,५,९४ ३५९) प्रश्न १५८- कषायवेदनीय के कितने भेद है? उत्तर - कषायवेदनीय के सोलह भेद हैं - अनन्तानुबन्धी क्रोध, अनन्तानुबन्धी मान, अनन्तानुबन्धी माया, अनन्तानुबन्धी लोभ, अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, अप्रत्याख्यानावरण मान, अप्रत्याख्यानावरण माया और अप्रत्याख्यानावरण लोभ, प्रत्याख्यानावरण क्रोध, प्रत्याख्यानावरण मान, प्रत्याख्यानावरण माया, प्रत्याख्यानावरण लोभ तथा संज्वलन क्रोध, संज्वलन मान, संज्वलन माया और संज्वलन लोभ । प्रश्न १५९- नोकषायवेदनीय के कितने भेद हैं ? उत्तर नोकषायवेदनीय के नौ भेद हैं - हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद। प्रश्न १६०-अनन्तानुबन्धी क्रोध मान माया लोभ किन्हें कहते हैं? उत्तर - जो कर्म आत्मा के स्वरूपाचरणचारित्र परिणाम को घातते हैं उन्हें अनन्तानुबन्धी क्रोध मान माया लोभ कहते हैं।
SR No.009716
Book TitleGyanpushpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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