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प्रश्न ०३१- धर्मद्रव्य किसे कहते हैं? उत्तर - जो स्वयं गतिरूप से परिणमित जीव और पुद्गलों को गमन करने (चलने) में सहकारी हो
अथवा निमित्त हो उसे धर्मद्रव्य कहते हैं। जैसे - मछली के गमन में जल। प्रश्न ०३२ - अधर्मद्रव्य किसे कहते हैं? उत्तर - जो गतिपूर्वक स्वयं स्थितिरूप से परिणमित जीव और पुद्गलों को रुकने (ठहरने) में
सहकारी अथवा निमित्त हो, उसे अधर्मद्रव्य कहते हैं। जैसे - पथिक को ठहरने में वृक्ष की
छाया। प्रश्न ०३३ - आकाश द्रव्य किसे कहते हैं? उत्तर
जो जीवादि पाँच द्रव्यों को रहने के लिए स्थान देता है, उसे आकाशद्रव्य कहते हैं।
जैसे- मनुष्यों को रहने के लिए घर, मकान आदि। प्रश्न ०३४- कालद्रव्य किसे कहते हैं? उत्तर - जो जीवादि समस्त द्रव्यों के परिणमन में सहकारी अथवा निमित्त होता है, उसे कालद्रव्य
कहते हैं। जैसे - कुम्हार के चाक को घूमने में लोहे की कीली। प्रश्न ०३५- काल के कितने भेद हैं? उत्तर - काल के दो भेद हैं -निश्चयकाल और व्यवहारकाल। प्रश्न ०३६- निश्चयकाल किसे कहते हैं? उत्तर - कालद्रव्य को निश्चयकाल कहते हैं। प्रश्न ०३७- व्यवहार काल किसे कहते हैं ? उत्तर - कालद्रव्य की पल, घड़ी, दिन, माह, वर्ष आदि पर्यायों को व्यवहारकाल कहते हैं।
१.३ पर्याय प्रश्न ०३८- पर्याय किसे कहते हैं? उत्तर - गुणों के परिणमन (विकार या कार्य) को पर्याय कहते हैं। प्रश्न ०३९- पर्याय के कितने भेद हैं? उत्तर - पर्याय के दो भेद हैं - व्यंजनपर्याय और अर्थपर्याय। प्रश्न ०४०- व्यंजनपर्याय किसे कहते हैं? उत्तर - प्रदेशत्वगुण के परिणमन (विकार या कार्य) को व्यंजनपर्याय कहते हैं। प्रश्न ०४१- व्यंजनपर्याय के कितने भेद हैं? उत्तर - व्यंजनपर्याय के दो भेद हैं - स्वभाव व्यंजनपर्याय और विभाव व्यंजनपर्याय । प्रश्न ०४२- स्वभाव व्यंजनपर्याय किसे कहते हैं? उत्तर - अन्य के निमित्त बिना जो व्यंजनपर्याय होती है, उसे स्वभाव व्यंजनपर्याय कहते हैं।
जैसे-जीव की सिद्ध पर्याय । प्रश्न ०४३- विभाव व्यंजनपर्याय किसे कहते हैं ? उत्तर
अन्य के निमित्त सहित जो व्यंजनपर्याय होती है, उसे विभाव व्यंजनपर्याय कहते हैं। जैसे - जीव की नर, नारकादि पर्याय ।