SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५६ अन्य व्यंजन पर्याय प्रवेशव गुण के विकार को व्यंजन पर्वाय कहते हैं। अन्य जैसे. | PER अर्थ पर्याय प्रदेशत्व गुण के अलावा अन्य गुणों के विकार को अर्थ पर्वाय कहते हैं। प्रश्न ०४४ - अर्थपर्याय किसे कहते हैं ? उत्तर - प्रदेशत्वगुण के अलावा अन्य समस्त गुणों के परिणमन (विकार या कार्य) को अर्थपर्याय कहते हैं? प्रश्न ०४५- अर्थपर्याय के कितने भेद है? उत्तर - अर्थपर्याय के दो भेद हैं - स्वभाव अर्थपर्याय और विभाव अर्थपर्याय। प्रश्न ०४६ - स्वभाव अर्थपर्याय किसे कहते हैं? उत्तर - अन्य के निमित्त बिना जो अर्थपर्याय होती है उसे स्वभाव अर्थपर्याय कहते हैं। जैसे-जीव का केवलज्ञान। प्रश्न ०४७- विभाव अर्थपर्याय किसे कहते हैं? उत्तर अन्य के निमित्तसहित जो अर्थपर्याय होती है उसे विभाव अर्थपर्याय कहते हैं। जैसे - जीव के राग-द्वेष आदि। (प्रश्न - किस-किस द्रव्य में कौन - कौन सी पर्यायें होती हैं ? उत्तर - जीव और पुद्गलद्रव्य में स्वभाव अर्थपर्याय, विभाव अर्थपर्याय, स्वभाव व्यंजनपर्याय और विभाव व्यंजनपर्याय, इस प्रकार चारों पर्यायें होती हैं। धर्म, अधर्म, आकाश और कालद्रव्य में स्वभाव अर्थपर्याय और स्वभाव व्यंजनपर्याय-इस तरह केवल दो पर्यायें होती हैं।)(- लघु जैन सिद्धांत प्रवेशिका, प्रश्न ६८) १.४ उत्पाद - व्यय-धौव्य प्रश्न ०४८ - उत्पाद किसे कहते हैं ? उत्तर - द्रव्य में नवीन पर्याय की प्राप्ति (उत्पत्ति) को उत्पाद कहते हैं।
SR No.009716
Book TitleGyanpushpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy