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________________ स्वरूप है, इसकी अनुमोदना करने से, इसी में लीन रहने से रत्न के समान रत्नत्रयमयी सिद्ध स्वरूप प्रगट हो जाता है। प्रश्न १- चतुर्गति रूप दु:ख से मुक्त होने का जिनेन्द्र भगवान ने क्या उपाय बताया है? उत्तर - जिनेन्द्र भगवान ने कहा है कि सहज ज्ञान और आनन्द आदि अनन्त गुण समृद्धि से परिपूर्ण शुद्धात्म तत्त्व का लक्ष्य करके द्रव्य दृष्टि को प्रगट करना चतुर्गति रूप संसार के दु:खों से मुक्त होने का उपाय है। प्रश्न २- जिनवाणी में मुक्ति मार्ग और सिद्ध पद की प्राप्ति का क्या उपदेश है? उत्तर - आत्म स्वरूप ज्ञानमय है, वह शरीरादि रूप नहीं है, ऐसा दृढ़ श्रद्धान ज्ञान करके, ममल स्वभाव का बार-बार चिंतन-मनन करना। पर परजय हो दिस्टि न देइ, सु ममल सुभाए' पर पर्याय पर दृष्टि न देना ही ममल स्वभाव है। 'अप्पा अप्पम्मि रओ' आत्मा-आत्मा में लीन हो जाये,यही मुक्ति मार्ग है। इसी से केवलज्ञान प्रगट होता है और सिद्ध पद की प्राप्ति होती है। प्रश्न ३- अंतर में ज्ञान और आनन्द किस प्रकार प्रगट होता है? उत्तर - सिद्ध परमात्मा के समान सभी आत्माओं का स्वभाव ज्ञानानन्दमयी है। ऐसा निरावलम्बी ज्ञान और सुख स्वभाव रूप मैं हूँ । ऐसा लक्ष्य में लेने पर जीव का उपयोग अतीन्द्रिय होता है और उसकी पर्याय में ज्ञान और आनन्द प्रगट हो जाता है। गाथा-२७ स्वभाव में लीनता से श्रेष्ठ गुणों की उत्पत्ति सेस्टं च गुन उवन्न, नेस्ट सहकार कम्म संषिपन । सेस्टं च इस्ट कमलं, कमलसिरि कमल भाव ममलं च ॥ अन्वयार्थ - [संसार में] (सेस्ट) सर्वश्रेष्ठ (च) और (इस्ट) इष्ट, प्रयोजनीय (कमल) कमल स्वभाव है इसकी साधना से] (सेस्ट गुन) श्रेष्ठ गुण (उवन्न) उत्पन्न हो जाते हैं (च) और (सेस्ट) श्रेष्ठ स्वभाव का (सहकार) सहकार करने से (कम्म) कर्म (संषिपनं) क्षय हो जाते हैं [इसलिये (कमलसिरि) हे कमल श्री ! (ममलं च) ममल स्वभाव के आश्रय से (कमल भाव) कमल भाव जाग्रत करो। अर्थ- संसार में सर्वोत्कृष्ट प्रयोजनीय अपना कमल स्वभाव है, इसकी साधना से साधक के जीवन में श्रेष्ठ गुण उत्पन्न हो जाते हैं और श्रेष्ठ स्वभाव का सहकार करने से कर्म क्षय हो जाते हैं, निर्जरित हो जाते है, इसलिये हे कमल श्री ! ममल स्वभाव के आश्रय से कमल भाव जाग्रत करो। प्रश्न १- साधना से कौन-कौन से गुण प्रगट होते हैं, और कमलश्री को श्री गुरू ने क्या प्रेरणा दी है? उत्तर - कमल श्री को प्रेरणा देते हुए श्री गुरू महाराज ने कहा है कि सर्वोत्कृष्ट, परम इष्ट अपना ममल स्वभाव है। इसकी साधना करने से श्रेष्ठ गुण, पंच परमेष्ठी पद, दशलक्षण धर्म, रत्नत्रय, अनन्त चतुष्टय आदि अनन्त गुण प्रगट होते हैं, कर्म क्षय हो जाते हैं इसलिये हे कमल श्री ! अपना ज्ञायक वीतराग भाव जाग्रत करो।
SR No.009716
Book TitleGyanpushpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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