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गाथा - २५
इष्ट की अनुमोदना से कर्मों पर विजय
इस्टं च परम इस्ट, इस्टं अन्मोय विगत अनिस्ट ।
पर पर्जावं विलियं, न्यान सहावेन कम्म जिनियं च ॥
अन्वयार्थ
(इस्ट) ज्ञान स्वभाव इष्ट (च) और (परम इस्ट) परम इष्ट है (इस्ट) इष्ट ज्ञान स्वभाव की (अन्मोयं) अनुमोदना करने से (अनिस्ट) अनिष्ट रागादि भाव (विगत) छूट जायेंगे (पर पर्जा) पर पर्यायें (विलियं) विला जायेंगी (च) और (न्यान सहावेन) ज्ञान स्वभाव में रहने से (कम्म) कर्मों पर (जिनियं) विजय प्राप्त होगी ।
अर्थ - त्रिकाल एक रूप रहने वाली आत्मसत्ता ज्ञान स्वभाव इष्ट और परम इष्ट है। अपने इस ज्ञान स्वभाव की अनुमोदना करने से अनिष्ट रागादि विकारी भाव छूट जाते हैं, पर पर्यायें विलय हो जाती हैं और ज्ञान स्वभाव में रहने से कर्मों पर विजय प्राप्त होती है।
प्रश्न २ उत्तर
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उत्तर
प्रश्न १- "इस्टं च परम इस्टं" इस गाथा में आचार्य श्री तारण स्वामी जी क्या प्रेरणा दे रहे हैं ? ज्ञान स्वभावी निज शुद्धात्मा इष्ट और परम इष्ट है। अपने इष्ट, चैतन्य मय शुद्धात्म स्वरूप का आश्रय करो। इससे अनिष्टकारी समस्त रागादि विकार छूट जायेंगे, पर पर्यायें विला जायेंगी । अपने ज्ञान स्वभाव में रहकर कर्मों को जीतो श्री गुरूदेव इस गाथा में यही पावन प्रेरणा दे रहे हैं ।
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मोक्षमार्ग क्या है और साधक जीव इस मार्ग में किस प्रकार आगे बढ़ते हैं ? व्यवहार रत्नत्रय साधन है, निश्चय रत्नत्रय साध्य है । साधक जीव प्रारम्भ से अंत तक निश्चय की मुख्यता रखकर व्यवहार को गौण करते जाते हैं। इससे साधक दशा में निश्चय की मुख्यता के बल से शुद्धता की वृद्धि होती है, अशुद्धता दूर होती जाती है। इस प्रकार निश्चय की मुख्यता रूप स्वभाव के आश्रय से साधक जीव इस मार्ग में आगे बढ़ते हैं इसलिये निश्चय रत्नत्रय की साधना ही यथार्थ मोक्षमार्ग है।
गाथा - २६
जिनेन्द्र परमात्मा के हितकारी वचन
जिन वयनं सुद्ध सुद्ध, अन्मोयं ममल सुद्ध सहकारं ।
ममलं ममल सरूवं, जं रयनं रयन सरूव संमिलियं ॥
अन्वयार्थ - (ममलं) त्रिकाल शुद्ध है वह अपना (ममल सरूवं ) ममल स्वरूप है (जिन) जिनेन्द्र भगवान के ( वयनं) वचन हैं [ कि] (सुद्ध) निश्चय से (सुद्धं) शुद्ध स्वभाव है (ममल) यही ममल स्वरूप है (अन्मोयं) इसकी अनुमोदना करने (सहकार) इसी में लीन रहने से (जं) जो ( रयनं) रत्न के समान (सुद्ध) शुद्ध (रयन सरूव) रत्नत्रय स्वरूप है [ वह] (संमिलियं) मिल जायेगा, प्रगट हो जायेगा ।
अर्थ - ममल है, वह अपना त्रिकाल शुद्ध ममल स्वरूप है। श्री जिनेन्द्र भगवान के दिव्य वचनों में पावन संदेश प्रस्फुटित हुआ है - आत्मा का निश्चय से कर्म रहित सिद्ध स्वभाव है, यही अपना शुद्ध ममल