________________
-
अन्वयार्थ - (सु समयं ) स्व समय [ शुद्धात्मा] (न्यान) ज्ञान (सहाव) स्वभावी है (ममल) इसी ममल (न्यान) ज्ञान स्वभाव की (अन्मोयं) अनुमोदना (सहकार) सहकार करो (न्यानं) ज्ञान है वह अपना ही (ममलं) ममल (न्यान सरूवं) ज्ञान स्वरूप है (अन्मोय) इसमें लीन होने से (सिद्धि) सिद्धि की (संपत्तं) सम्पत्ति प्राप्त होती है।
करने में तल्लीन रहता है, इसमें उसे हिंसा - अहिंसा का विवेक नहीं रहता और अपनी स्वार्थ पूर्ण क्रियाओं को पूर्ण करने में दूसरे जीवों को पीड़ा पहुँचाता है।
अर्थ - स्व समय अर्थात् अपना शुद्धात्म स्वरूप ज्ञान स्वभावी है । इस ममल ज्ञान स्वभाव की अनुमोदना करो, ज्ञान है वह अपना ही ममल ज्ञान स्वरूप है इसमें लीन होने से दुःखों से निर्वृत्ति, आनन्द परमानन्द की उपलब्धि, कर्मों का क्षय और सिद्धि की सम्पत्ति प्राप्त होती है।
प्रश्न १- सम्यक् चारित्र किसे कहते हैं ?
उत्तर
१.
-
-
२.
३.
४.
गाथा - २४
सम्यक् चारित्र से सिद्धि की प्राप्ति
न्यान सहाव सु समयं, अन्मोयं ममल न्यान सहकारं ।
न्यानं न्यान सरूवं ममलं अन्मोय सिद्धि संपत्तं ॥
५.
पाप क्रिया निर्वृतिः चारित्रम् पाप क्रियाओं से निवृत्ति को चारित्र कहते हैं। जिससे अहित का निवारण और हित की प्राप्ति हो उसको चारित्र कहते हैं।
अर्थात् सत्पुरुष जिसका आचरण करते हैं उसको चारित्र कहते हैं जिसके सामायिक आदि पाँच भेद हैं।
१४०
-
जो जानता है वह ज्ञान है और जो देखता है वह दर्शन है। ज्ञान और दर्शन की एकता को सम्यक्चारित्र कहते हैं।
प्रश्न २ सम्यक् चारित्र के कितने भेद हैं?
उत्तर
सम्यक्चारित्र के दो भेद हैं- व्यवहार सम्यक्चारित्र और निश्चय सम्यक्चारित्र । प्रश्न ३ - व्यवहार सम्यक् चारित्र किसे कहते हैं ?
उत्तर
स्वरूपे चरणं चारित्रं स्व समय प्रवृत्तिरित्यर्थ: स्वरूप में आचरण करना चारित्र है, स्वसमय में प्रवृत्ति करना ही धर्म है।
-
प्रश्न ४ - निश्चय सम्यक् चारित्र किसे कहते हैं ?
उत्तर
-
अशुभ क्रियाओं से निवृत्त होकर व्रत, समिति, गुप्ति आदि शुभ उपयोग में प्रवृत्त होने को व्यवहार सम्यक्चारित्र कहते हैं। इसे सराग चारित्र भी कहा जाता है।
संसार के कारणों का अभाव करने के लिये बाह्य और अभ्यंतर क्रियाओं का निरोध कर आत्म स्वरूप में लीन होना निश्चय सम्यक्चारित्र है। इसे वीतराग चारित्र भी कहते हैं।
विशेष सम्यक्चारित्र से संसार का अभाव और सिद्धि मुक्ति की प्राप्ति होती है।