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________________ १३९ करता है। ज्ञानी की दृष्टि यथार्थ होती है इसलिये वह एकांत पक्ष से नहीं निश्चय नय को ग्रहण करता है और न एकांत ही पूर्वक व्यवहार नय को मानता है । वह नयातीत समभाव में अपने स्वभाव को देखता है। प्रश्न ४- जीव और कर्मबंध के संबंध में नयों का क्या कथन है? उत्तर - जीव कर्म से बंधा हुआ है तथा स्पर्शित है यह व्यवहार नय का कथन है। जीव कर्म से अबद्ध और अस्पर्शित है ऐसा शुद्ध नय का कथन है। प्रश्न ५- नय पक्ष को किस प्रकार समझना चाहिये और नयातीत स्वभाव की प्राप्ति कैसे होती है? उत्तर - व्यवहार नय कहता है कि जीव कर्म से बंधा हुआ है जबकि निश्चय नय कहता है कि जीव कर्म से बंधा हुआ नहीं है। यह दोनों नय पक्ष हैं। कोई जीव बंध पक्ष को या कोई जीव अबंध पक्ष को ग्रहण करता है वह विकल्प को ही ग्रहण करता है। कोई जीव दोनों पक्षों को मानता है वह भी विकल्प को ग्रहण करता है परन्तु भेद और विकल्पों को छोड़कर जो जीव पक्षातीत हो जाता है वह नयातीत शुद्धात्मा को प्राप्त करता है। इस विधि से नयातीत स्वभाव की प्राप्ति होती है। गाथा -२३ स्वभाव का विरोध करना हिंसा है सत्वं किलिस्ट जीवा, अन्मोयं सहकार दुग्गए गमनं । जे विरोह सभावं, संसारे सरनि दुष्य वीर्यमी ॥ अन्वयार्थ-(जीवा) जो जीव (सत्व) प्राणियों को (किलिस्ट) दु:खी करते हैं [और उनके दुःखों को अच्छा मानकर जो उसकी ] (अन्मोयं) अनुमोदना (सहकार) सहकार करते हैं, उनका (दुग्गए) दुर्गति में (गमन) गमन होता है (जे) जो जीव (सभाव) स्वभाव का (विरोह) विरोध करते हैं; वे (संसारे) संसार में (सरनि) परिभ्रमण, जन्म - मरण के (दुष्य) दु:खों का (वीयंमी) बीज बोते हैं। अर्थ- जो जीव किसी भी प्राणी को दुःख देते हैं और उसकी अनुमोदना सहकार करते हैं उनका दुर्गति में गमन होता है। जो जीव स्वभाव का विरोध करते हैं अर्थात् संसारी व्यवहार और राग को धर्म मानते हैं अथवा जीव दया का पालन नहीं करते, वे संसार में जन्म - मरण के दुःखों का बीजारोपण करते हैं। प्रश्न १- हिंसा कितने प्रकार की होती है? उत्तर - हिंसा दो प्रकार की होती है - १. द्रव्य हिंसा २. भाव हिंसा। १. द्रव्य हिंसा- किसी भी प्राणी के प्राणों का घात करना, दुःख देना द्रव्य हिंसा है। २. भाव हिंसा - राग - द्वेष आदि के भावों का उत्पन्न होना भाव हिंसा है। प्रश्न २- कोई भी जीव दूसरे जीवों को पीड़ा क्यों पहुँचाता है? उत्तर - अज्ञानी जीव आत्म स्वरूप को नहीं जानता। मात्र अपने सुख भोग की सुविधाओं को प्राप्त
SR No.009716
Book TitleGyanpushpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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